#अभ्युदय से चरमोत्कर्ष #एपिसोड--00
#अभ्युदय_से_चरमोत्कर्ष #एपिसोड - 00 28.10.2018 आरक्षण: भोग या सहारा किसी ने क्या खूब कहा है :~ “सूतो वा सूतपुत्रो वा यो वा को वा भवाम्यहम्। दैवायतं कुले जन्मः मयायत्तं तु पौरुषम्॥“ अर्थात - मैं चाहे सूत हूँ या सूतपुत्र, अथवा कोई और। किसी कुल-विशेष में जन्म लेना यह तो दैव के अधीन है, मेरे पास जो पौरुष है उसे मैने पैदा किया है। समाज के विभिन्न वर्गों के अलग अलग लोगों का आरक्षण पद्धति के प्रति अलग अलग मत है कोई कहता है होना चाहिए कोई कहता है नहीं होना चाहिए परंतु हमारा मानना है कि समाज में ऐसी परिकल्पना की आवश्यकता है जिससे समाज के वैसे लोग चाहे वह किसी जाति, धर्म, समुदाय से संबंध रखते हो जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से वंचित रह गए हैं उन सभी वंचितों को साथ लाकर कदम से कदम मिलाकर साम्यवादी सोच के साथ सर्वसमता की भावना से संबंधित व अधिकारित कर राष्ट्र निर्माण में भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। सन 1882 में महात्मा ज्योति राव फुले ने वंचित के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की वकालत की थी। सर्वप्रथम 1901 में भ...