#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_54
हमारी कविता संग्रह : उफ्फ मेरा चाँद न जाने कितनों को दीवाना बनाएगा कभी दीवाना हुआ बादल कभी दीवाने हुए कायल उफ्फ मेरा चाँद… न जाने कितनों को भला तड़पायेगा कभी यह घन में छुपता कभी यह मन में छुपता उफ्फ मेरा चाँद… न जाने कौन सी पीड़ को छुपाता दिल में कभी इसका आकार घटता-बढ़ता कभी तन पे में काला धब्बा दिखता उफ्फ मेरा चाँद… न जाने कौन सी अदा है इसके फलक पर कभी इसमें महबूब नजर आए कभी इसमें महबूबा नजर आए उफ्फ मेरा चाँद… न जाने कब तृप्त होंगे मन भी नयन भी कभी कोई चकोर रात भर तकता कभी दीवाना दिनभर आहें भरता उफ्फ मेरा चाँद… न जाने मेरे चाँद को किसकी नजर लगी कभी अमावस की रात होती है कभी नभ में बदल घुमड़ते हैं उफ्फ मेरा चाँद… न जाने चाँद के चांदनी की शीतलता मिलेगी कभी बरगद के पेड़ों से ओझल होती हैं कभी वो बदल के पीछे छुप जाती है उफ्फ मेरा चाँद…