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नारी अस्मिता और मूकदर्शक पुरुष समाज

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अभ्युदय से चर्मोत्कर्ष  एपिसोड_59 वैदिक युग में नारियों का बड़ा ही पूजनीय स्थान था. विवाह के अवसर पर वधू को आशीर्वाद देने के लिए ऋग्वेद में जो मंत्र है, उसमें वधू से कहा गया है कि सास, ससुर, देवर और ननद की तुम साम्राज्य बनो. स्त्रियां तो गृहस्वामिनी तो होती ही थी, किंतु उनका कार्यक्षेत्र केवल घरों तक ही सीमित नहीं था. वेद की कितनी ही ऋचाऐं नारियों की रची हुई हैं. नारियों के प्रति अन्याय न हो, वे शोक न करें, न वे उदास होने पाए, यह उपदेश मनुस्मृति ने बार-बार दिया है ; शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा ॥ अर्थात : जिस कुल में नारी शोक-मग्न रहती है, उस कुल का शीघ्र ही विनाश हो जाता है. जिस कुल में नारियाँ शोकमग्न नहीं रहती, उस कुल की सर्वदा उन्नति होती है. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:॥ अर्थात : जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं. जहां नारियों की पूजा नहीं होती, वहाँ के सारे कर्म व्यर्थ हैं. वैदिक युग की इस शुभ परंपरा की अनुगूँज हम पुराणों में ...