सुनो! सुनना जरूर (कविता संग्रह)
सुनो! सुनना जरूर एपिसोड-63 सुनो.! तुम्हीं से कह रहा सुना है कभी, झरने की आवाज, पत्तों की खड़खड़ाहट, पक्षियों की चहचहाहट, सुनना कभी ये भी कुछ कहते हैं ऐसे सुनना जैसे फिर न सुनना पड़े डूब कर सुनना उन तरंगों में सुनना ऐसे जैसे खो जाना स्वरों में की वो तुमसे ही कुछ कह रहे हों हाँ, तुमसे हीं तुम सुनोगे उसकी वेदना उसकी छटपटाहट उसकी उद्विग्नता की जैसे कहीं स्वयं को समर्पित करने की चाह भरी हो उसमें उसके रोम-रोम जैसे किसी की प्रतीक्षा कर रहे हों किसी का अंश उसमें रह गया हो जैसे कोई पुकारता जैसे उसी अंतहीन तरंगों के उद्गम स्थल को ढूंढती कह रही हो, झरने पत्ते पक्षी की अकुलाहट जैसे एक नाद में हीं सबकुछ कह देना चाह रही हो, सुनना, जरूर सुनना जब सुनोगे (डूबकर) तो जानोगे हर कोई किसी को पाने के लिए ही अनवरत अनहद अविराम चल रहा है की अगले कदम वो मिल जाएगा जिसकी आश है। सुनो.! तुम्हीं से कह रहा जरूर सुनना जो कुछ सुनना उस अनकहे को मुझसे कहना की मैं समझ दूँ उन स्वरों को उन तरंगों को क्योंकि… मैं सुनता हूँ अक्सर सुनता हूँ जब भी अकेला तुम्हें सोचता हूँ सोचता हूँ, मेरा कह...