#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड--05

#अभ्युदय_से_चरमोत्कर्ष
#एपिसोड--05
रावण दहन : दिखावा या सच्चाई भी !!
#Me_Too
अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का साहस इंसाफ की राह में उठाया गया शुरूआती कदम होता है इस आवाज को मिलने वाले समर्थन से तय होता है समाज आज भी कितना इंसाफ पसंद है। कार्यस्थल/सार्वजनिकस्थल पर अपमान व घुटन का अनुभव करने वाली महिलाओं की एक बड़ी आबादी सामाजिक लांछन और अन्य आकांक्षा से चुप रहती आई है लेकिन अब मुकरता का दौर है जिससे लैंगिक समानता की दिशा में संभावनाओं के नए द्वार खुल रहे हैं। लैंगिक समानता और न्याय के लिए दीर्घकालिक प्रयास जरूरी है। समाज में जागरूकता के साथ संस्थानिक प्रणाली के व्यापकता को सुनिश्चित करने की माहती चुनौती है इसके लिए महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की गारंटी के हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए।
मौजूदा अभियान #MeToo सरकारी व गैरसरकारी संस्थानों और समाज के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर व चुनौती है।
शर्म की बात है कि जिस राष्ट्र/समाज में प्रगति का मापदंड नारियों के प्रगति के मापदंड से होती है वहीं उनके साथ इतना अन्याय...!!
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी विजयादशमी को #रावण_दहन किया गया। बेशक रावण अन्याय, अनीति, हिंसा, दुराग्रह, दुरात्मा का प्रतीक था, लेकिन क्या महज पुतलों को जलाकर हमारे कर्तव्यों, उत्तरदायित्वों की इतिश्री नहीं हो जाती। आखिर कब तक हम विजयादशमी के अवसर पर रावण के झूठे पुतले को जलाकर आत्मसंतुष्टि का अनुभव करते रहेंगे..??
कितना आशां है महज एक पुतले को जलाकर आत्मसंतुष्टि व गौरव का अनुभव करना, मगर अपने अंदर के रावण को मारना कितना कठिन हो गया है.....😢😢
हम चाहे कितने हिं पुतलों को जलाएं, जबतक हम छपने अंदर के रावण को न जलाएंगे तबतक ये हमारे चरित्र पर एक लांछन हीं रहेगा....

तेरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएं
वोही आँसू, वोही आहें, वोही ग़म हैं जिधर जाएं
तेरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है की मर जाएं
कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता
वोही बेगाने चेहरे हैं जहाँ पहुँचे जिधर जाएं
तेरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है की मर जाएं
अरे ओ आसमाँ वाले बता इसमें बुरा क्या है
खुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएं
तेरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है की मर जाएं
#अभ्युदय_से_चरमोत्कर्ष
#एपिसोड--05
रावण दहन : दिखावा या सच्चाई भी !!
#Me_Too
अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का साहस इंसाफ की राह में उठाया गया शुरूआती कदम होता है इस आवाज को मिलने वाले समर्थन से तय होता है समाज आज भी कितना इंसाफ पसंद है। कार्यस्थल/सार्वजनिकस्थल पर अपमान व घुटन का अनुभव करने वाली महिलाओं की एक बड़ी आबादी सामाजिक लांछन और अन्य आकांक्षा से चुप रहती आई है लेकिन अब मुकरता का दौर है जिससे लैंगिक समानता की दिशा में संभावनाओं के नए द्वार खुल रहे हैं। लैंगिक समानता और न्याय के लिए दीर्घकालिक प्रयास जरूरी है। समाज में जागरूकता के साथ संस्थानिक प्रणाली के व्यापकता को सुनिश्चित करने की माहती चुनौती है इसके लिए महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की गारंटी के हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए।
मौजूदा अभियान #MeToo सरकारी व गैरसरकारी संस्थानों और समाज के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर व चुनौती है।
शर्म की बात है कि जिस राष्ट्र/समाज में प्रगति का मापदंड नारियों के प्रगति के मापदंड से होती है वहीं उनके साथ इतना अन्याय...!!
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी विजयादशमी को #रावण_दहन किया गया। बेशक रावण अन्याय, अनीति, हिंसा, दुराग्रह, दुरात्मा का प्रतीक था, लेकिन क्या महज पुतलों को जलाकर हमारे कर्तव्यों, उत्तरदायित्वों की इतिश्री नहीं हो जाती। आखिर कब तक हम विजयादशमी के अवसर पर रावण के झूठे पुतले को जलाकर आत्मसंतुष्टि का अनुभव करते रहेंगे..??
कितना आशां है महज एक पुतले को जलाकर आत्मसंतुष्टि व गौरव का अनुभव करना, मगर अपने अंदर के रावण को मारना कितना कठिन हो गया है.....😢😢
हम चाहे कितने हिं पुतलों को जलाएं, जबतक हम छपने अंदर के रावण को न जलाएंगे तबतक ये हमारे चरित्र पर एक लांछन हीं रहेगा....

तेरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएं
वोही आँसू, वोही आहें, वोही ग़म हैं जिधर जाएं
तेरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है की मर जाएं
कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता
वोही बेगाने चेहरे हैं जहाँ पहुँचे जिधर जाएं
तेरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है की मर जाएं
अरे ओ आसमाँ वाले बता इसमें बुरा क्या है
खुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएं
तेरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है की मर जाएं

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