#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड-17
#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड--17 " अपात्र नेतृत्व, गुमराह युवान और कराहता जनहित" निदा फाजली की एक कृति जो आज के हमारे समकक्ष युवान साथियों पर क्या खूब जचती है... अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं रुख हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं | पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है अपने ही घर में, किसी दूसरे घर के हम हैं | वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से किसको मालूम, कहाँ के हैं, किधर के हम हैं | चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब सोचते रहते हैं, किस राहगुज़र के हम हैं | गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं | हमारे युवान साथी क्या सचमुच इतने हल्के जमीर के हो गए...!! ठहरिए, सोचिए, नहीं तो आज का बुद्धिमान प्रपंची नेतृत्व हमें कहिं का नहीं छोड़ेगा, वर्तमान में वो खुद के लिए आपका उपयोग करेगा फिर अपने पाल्यों के लिए निबंधित करेगा... हे भारत ! राष्ट्र के प्रति अपने नैतिक कर्तव्यों के निर्वहन से न कतराएं, न घबरायें, अपनी हिम्मत हारती जिजीविषा से कहें #डटे_रहो व अपनी अंतरात्मा को हमेशा स्प...