#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_22
#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष
#एपिसोड_22
#अमृता_प्रीतम की याद में
बीते दिनों #अमृता_के_खत पढ़ रहा था, बड़ी हीं सहजता से जिसप्रकार उन्होंने अपने प्रेम के प्रति समर्पित जीवन को शब्दों का रूप दिया है, मैं तो स्तब्ध से रह गया। वो बड़े खुशनसीब व प्रतिभावान होते हैं व किस्मतवाला भी, जो अपने हृदय की अनुभूतियों को अल्फाज दे सकने की प्रतिभा रखते हैं। मैंने जब पढ़ा तो ऐसा लगा कि उनके हरेक लफ्ज_ब_लफ्ज ने हमारे हृदय की सम्वेदनाओं को चुरा लिया है। उनके द्वारा लिखे कुछ अनमोल शब्दों को सहेजे उनकी कृतियों से जितना कुछ हमने चुरा पाया या ये कहें कि समझ पाया, मैं यहां लिख रहा हूँ और आगे भी 10-12 भाग में लिखूंगा क्योंकि मैं तो एक बिंदु मात्र हूँ और उनकी कृतियाँ सिंधु... असम्भव है उनकी कृतियों में छुपी भावनाओं को कुछ शब्दों में प्रेषित करना।
अमृता प्रीतम जी ने अनेक कहानियाँ लिखी है इन कहानियों में प्रतिबिम्बित हैं स्त्री पुरुष योग वियोग की मर्म कथा और परिवार ,समाज से दुखते नारी के दर्द के बोलते लफ्ज़ हैं ...कई कहानियाँ अपनी अमिट छाप दिल में छोड़ जाती है .....कुछ कहानियाँ अमृता जी ने खुद ही अपने लिखे से अलग संग्रह की थी और वह तो जैसे एक अमृत कलश बन गयी .....
#खतों_का_सिलसिला... से अमृता का एक खत इमरोज़ के नाम...
प्यार के उन पथिकों के लिए.....
जिन्होंने राह के काँटे नहीं गिने.....
मंज़िल की परवाह नहीं की.....
किया तो सिर्फ प्यार......जिया तो सिर्फ प्यार......
मेरे अच्छे जीती,
आज मेरे कहने से, अभी, अपने सोने के कमरे में जाना, रेडियोग्राम चलाना और बर्मन की आवाज सुनना- सुन मेरे बंधु रे। सुन मेरे मितवा। सुन मेरे साथी रे। और मुझे बताना, वे लोग कैसे होते हैं, जिन्हें कोई इस तरह आवाज देता है...
मैं सारी उम्र कल्पना के गीत लिखती रही,
पर यह मैं जानती हूँ - मैं वह नहीं हूँ जिसे कोई इस तरह आवाज दे...और...मैं यह भी जानती हूँ, मेरी आवाज का कोई जवाब नहीं आएगा...
कल एक सपने जैसी तुम्हारी चिट्ठी आई थी। पर मुझे तुम्हारे मन की कॉन्फ्लिक्ट का भी पता है। यूँ तो मैं तुम्हारा अपना चुनाव हूँ, फिर भी मेरी उम्र और मेरे बन्धन तुम्हारा कॉन्फ्लिक्ट हैं।
तुम्हारा मुँह देखा, तुम्हारे बोल सुने तो मेरी भटकन खत्म हो गई। पर आज तुम्हारा मुँह इनकारी है, तुम्हारे बोल इनकारी हैं।
क्या इस धरती पर मुझे अभी और जीना है जहाँ मेरे लिए तुम्हारे सपनों ने दरवाज़ा भेड़ लिया है...!!
तुम्हारे पैरों की आहट सुनकर मैंने जिंदगी से कहा था-
अभी दरवाजा बन्द नहीं करो हयात..
रेगिस्तान से किसी के कदमों की आवाज आ रही है...
पर आज मुझे तुम्हारे पैरों का आवाज सुनाई नहीं दे रही है...
अब जिंदगी को क्या कहूँ..??
क्या यह कहूँ कि अब सारे दरवाजे बन्द कर ले..!!...??
....अमृता
उनके अल्फाज, भावनाएं हमारी....
अक्षय आनन्द श्री
#एपिसोड_22
#अमृता_प्रीतम की याद में
बीते दिनों #अमृता_के_खत पढ़ रहा था, बड़ी हीं सहजता से जिसप्रकार उन्होंने अपने प्रेम के प्रति समर्पित जीवन को शब्दों का रूप दिया है, मैं तो स्तब्ध से रह गया। वो बड़े खुशनसीब व प्रतिभावान होते हैं व किस्मतवाला भी, जो अपने हृदय की अनुभूतियों को अल्फाज दे सकने की प्रतिभा रखते हैं। मैंने जब पढ़ा तो ऐसा लगा कि उनके हरेक लफ्ज_ब_लफ्ज ने हमारे हृदय की सम्वेदनाओं को चुरा लिया है। उनके द्वारा लिखे कुछ अनमोल शब्दों को सहेजे उनकी कृतियों से जितना कुछ हमने चुरा पाया या ये कहें कि समझ पाया, मैं यहां लिख रहा हूँ और आगे भी 10-12 भाग में लिखूंगा क्योंकि मैं तो एक बिंदु मात्र हूँ और उनकी कृतियाँ सिंधु... असम्भव है उनकी कृतियों में छुपी भावनाओं को कुछ शब्दों में प्रेषित करना।
अमृता प्रीतम जी ने अनेक कहानियाँ लिखी है इन कहानियों में प्रतिबिम्बित हैं स्त्री पुरुष योग वियोग की मर्म कथा और परिवार ,समाज से दुखते नारी के दर्द के बोलते लफ्ज़ हैं ...कई कहानियाँ अपनी अमिट छाप दिल में छोड़ जाती है .....कुछ कहानियाँ अमृता जी ने खुद ही अपने लिखे से अलग संग्रह की थी और वह तो जैसे एक अमृत कलश बन गयी .....
#खतों_का_सिलसिला... से अमृता का एक खत इमरोज़ के नाम...
प्यार के उन पथिकों के लिए.....
जिन्होंने राह के काँटे नहीं गिने.....
मंज़िल की परवाह नहीं की.....
किया तो सिर्फ प्यार......जिया तो सिर्फ प्यार......
मेरे अच्छे जीती,
आज मेरे कहने से, अभी, अपने सोने के कमरे में जाना, रेडियोग्राम चलाना और बर्मन की आवाज सुनना- सुन मेरे बंधु रे। सुन मेरे मितवा। सुन मेरे साथी रे। और मुझे बताना, वे लोग कैसे होते हैं, जिन्हें कोई इस तरह आवाज देता है...
मैं सारी उम्र कल्पना के गीत लिखती रही,
पर यह मैं जानती हूँ - मैं वह नहीं हूँ जिसे कोई इस तरह आवाज दे...और...मैं यह भी जानती हूँ, मेरी आवाज का कोई जवाब नहीं आएगा...
कल एक सपने जैसी तुम्हारी चिट्ठी आई थी। पर मुझे तुम्हारे मन की कॉन्फ्लिक्ट का भी पता है। यूँ तो मैं तुम्हारा अपना चुनाव हूँ, फिर भी मेरी उम्र और मेरे बन्धन तुम्हारा कॉन्फ्लिक्ट हैं।
तुम्हारा मुँह देखा, तुम्हारे बोल सुने तो मेरी भटकन खत्म हो गई। पर आज तुम्हारा मुँह इनकारी है, तुम्हारे बोल इनकारी हैं।
क्या इस धरती पर मुझे अभी और जीना है जहाँ मेरे लिए तुम्हारे सपनों ने दरवाज़ा भेड़ लिया है...!!
तुम्हारे पैरों की आहट सुनकर मैंने जिंदगी से कहा था-
अभी दरवाजा बन्द नहीं करो हयात..
रेगिस्तान से किसी के कदमों की आवाज आ रही है...
पर आज मुझे तुम्हारे पैरों का आवाज सुनाई नहीं दे रही है...
अब जिंदगी को क्या कहूँ..??
क्या यह कहूँ कि अब सारे दरवाजे बन्द कर ले..!!...??
....अमृता
उनके अल्फाज, भावनाएं हमारी....
अक्षय आनन्द श्री



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