#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड--02
#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष
#एपिसोड--02
29 अक्टूबर 2018
NEETug में ऊपरी आयुसीमा : चिकित्साशिक्षा के लिए कलंक
हमारा देश हिन्दुस्तान एक विकासशील देश है व विविधताओं से पूर्ण है।यहाँ लगभग 70 % आबादी गाँव में बसती है,यहां की साक्षरता दर हीं 25% है।आजादी के 70 साल बाद भी तमाम प्रकार की सामाजिक,आर्थिक व शैक्षणिक विषमताएं चरम पर हैं।
जबकि 2013 में पहली बार चिकित्साशिक्षा के लिए (केवल MBBS~BDS सीटों के लिए) देश मे एकल प्रवेश परीक्षा NEETug का संचालन हुआ जिसमें 15% राष्ट्रीय कोटा सीट व राज्य की 85% सीट के लिए अलग अलग पात्रताएँ थीं ( राज्य कोटे के लिए कोई ऊपरी आयुसीमा नहीं थी ) जिससे राज्य के सुदूर ग्रामीण परिवेश में अत्यंत सामाजिक,आर्थिक व शैक्षणिक विषमताओं का दंश झेलते हुए ग्रामीण अभ्यार्थी भी चयनित होते थे,ग्रामीण क्षेत्रों में हीं अपनी सेवाएं देते थे व अन्य विषमतापोषित अभ्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत बनते थे जिससे वो मानवता व राष्ट्रकल्याण में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर संविधान की "हम भारत के लोग" की परिकल्पना पर गर्व करते थे।
परन्तु वर्ष 2017 में परीक्षा का स्वरूप बदला व NEETug को देश के सभी चिकित्साशिक्षा [जैसे-MBBS, BDS, VAT, AAYUSH (BAMS, BUMS, BHMS),YOGA व अन्य सभी] देने वाली संस्थाओं (सरकारी, गैरसरकारी व विदेश) में प्रवेश के लिए अनिवार्य कर दिया गया व परीक्षा में प्रवेश के लिए ऊपरी आयुसीमा (सामान्य ~ 25 वर्ष, आरक्षित~30 वर्ष) निर्धारित कर दी गई जिससे विषमतापोषित अभ्यार्थी प्रवेश से वंचित हो गए। वर्ष 2017 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने MciAct में ऊपरी आयुसीमा के लिए कोई प्रावधान न होने के कारण सभी को प्रवेश की अनुमति दी परन्तु जनकल्याण के लिए अन्य संशोधन न कर MCI ने 23जनवरी 2018 को अपने "भारत का राजपत्र" के माध्यम से MciAct1956 में ऊपरी आयुसीमा निर्धारण सम्बन्धित संशोधन को सूचित कर NEETug में सम्मलित होने के लिए अनिवार्य कर दिया गया। ग्रामीण क्षेत्र के विषमतापोषित अभ्यार्थी अपर्याप्त आर्थिक व शैक्षणिक सुविधा के कारण अपने परिवार के लिये जीविकोपार्जन करते हुए साक्षात एकलव्य की भाँति अध्ययन करते हैं।अच्छी प्रारम्भिक व माध्यमिक शिक्षा तो दूर की बात, गाँव के लोग दैनिक जीवनयापन की मूलभूत आवश्यकताओं "भोजन, वस्त्र व आवास" को संग्रहित करने में हीं दिन गुजर जाते हैं व इन्हें अपने सपनों को पूरा करने को खर्च करने के लिए इनकी आयु हीं होती है फलस्वरूप प्रवेश परीक्षा में सफल होने में वक्त लग जाता है।
"शिक्षा" हमारी तीन आवश्यक आवश्यकता "भोजन, वस्त्र व आवास" के बाद चौथी आवश्यकता है और शिक्षा तो राष्ट्र के प्रगति की नींव होती हैं। महोदय, हमारा देश विषमताओं से भरा है,केंद्र सरकार को ऐसी शैक्षणिक नीतियां बनानी चाहिए जिससे ग्रामीणभारत के विषमतापोषित अभ्यार्थियों की चिकित्साशिक्षा सुनिश्चित हो, कदाचारमुक्त परीक्षाओं का संचालन हो, देश में चिकित्साशिक्षा के क्षेत्र में संसाधनों को विकसित कर सीटों की संख्या बढ़ाई जाएं व स्वास्थ्य~व्यवस्था व चिकित्साशिक्षा के संदर्भ में एक परिपक्व चिंतन के साथ नीतियां बनाये तथा विषमतापोषित ग्रामीण अभ्यार्थियों के लिए समानांतर प्रणाली हों जिससे चिकित्साशिक्षा प्राप्त करने से वंचित न रह जाएं।
अतः ग्रामीण भारत की चिंताजनक स्थिति में स्वरोजगारोन्मुख व रोजगारप्रदत चिकित्साशिक्षा प्राप्त करने के लिए देश की एकमात्र एकल प्रवेश परीक्षा NEETug में ऊपरी आयुसीमा निर्धारित न होने दें व चिकित्साशिक्षा को किसी खास वर्ग की शिक्षा न होने दें जिससे ग्रामीण अभ्यार्थी भी अपनी प्रतिभा का चरम विकाश कर राष्ट्रकल्याण व जनकल्याण में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें व "अंत्योदय" की परिकल्पना साकार हो तथा सामाजिक न्याय के साथ "सबको शिक्षा,अच्छी शिक्षा" वाली सरकार की प्रतिबद्धता पूर्ण हो एवं हमारे देश की जनता को "हम भारत के लोग..." की परिकल्पना पर गर्व हो।
अक्षय आनन्द, भागलपुर, बिहार.
Email~akshayanand2222@gmail.com
#एपिसोड--02
29 अक्टूबर 2018
NEETug में ऊपरी आयुसीमा : चिकित्साशिक्षा के लिए कलंक
हमारा देश हिन्दुस्तान एक विकासशील देश है व विविधताओं से पूर्ण है।यहाँ लगभग 70 % आबादी गाँव में बसती है,यहां की साक्षरता दर हीं 25% है।आजादी के 70 साल बाद भी तमाम प्रकार की सामाजिक,आर्थिक व शैक्षणिक विषमताएं चरम पर हैं।
जबकि 2013 में पहली बार चिकित्साशिक्षा के लिए (केवल MBBS~BDS सीटों के लिए) देश मे एकल प्रवेश परीक्षा NEETug का संचालन हुआ जिसमें 15% राष्ट्रीय कोटा सीट व राज्य की 85% सीट के लिए अलग अलग पात्रताएँ थीं ( राज्य कोटे के लिए कोई ऊपरी आयुसीमा नहीं थी ) जिससे राज्य के सुदूर ग्रामीण परिवेश में अत्यंत सामाजिक,आर्थिक व शैक्षणिक विषमताओं का दंश झेलते हुए ग्रामीण अभ्यार्थी भी चयनित होते थे,ग्रामीण क्षेत्रों में हीं अपनी सेवाएं देते थे व अन्य विषमतापोषित अभ्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत बनते थे जिससे वो मानवता व राष्ट्रकल्याण में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर संविधान की "हम भारत के लोग" की परिकल्पना पर गर्व करते थे।
परन्तु वर्ष 2017 में परीक्षा का स्वरूप बदला व NEETug को देश के सभी चिकित्साशिक्षा [जैसे-MBBS, BDS, VAT, AAYUSH (BAMS, BUMS, BHMS),YOGA व अन्य सभी] देने वाली संस्थाओं (सरकारी, गैरसरकारी व विदेश) में प्रवेश के लिए अनिवार्य कर दिया गया व परीक्षा में प्रवेश के लिए ऊपरी आयुसीमा (सामान्य ~ 25 वर्ष, आरक्षित~30 वर्ष) निर्धारित कर दी गई जिससे विषमतापोषित अभ्यार्थी प्रवेश से वंचित हो गए। वर्ष 2017 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने MciAct में ऊपरी आयुसीमा के लिए कोई प्रावधान न होने के कारण सभी को प्रवेश की अनुमति दी परन्तु जनकल्याण के लिए अन्य संशोधन न कर MCI ने 23जनवरी 2018 को अपने "भारत का राजपत्र" के माध्यम से MciAct1956 में ऊपरी आयुसीमा निर्धारण सम्बन्धित संशोधन को सूचित कर NEETug में सम्मलित होने के लिए अनिवार्य कर दिया गया। ग्रामीण क्षेत्र के विषमतापोषित अभ्यार्थी अपर्याप्त आर्थिक व शैक्षणिक सुविधा के कारण अपने परिवार के लिये जीविकोपार्जन करते हुए साक्षात एकलव्य की भाँति अध्ययन करते हैं।अच्छी प्रारम्भिक व माध्यमिक शिक्षा तो दूर की बात, गाँव के लोग दैनिक जीवनयापन की मूलभूत आवश्यकताओं "भोजन, वस्त्र व आवास" को संग्रहित करने में हीं दिन गुजर जाते हैं व इन्हें अपने सपनों को पूरा करने को खर्च करने के लिए इनकी आयु हीं होती है फलस्वरूप प्रवेश परीक्षा में सफल होने में वक्त लग जाता है।
"शिक्षा" हमारी तीन आवश्यक आवश्यकता "भोजन, वस्त्र व आवास" के बाद चौथी आवश्यकता है और शिक्षा तो राष्ट्र के प्रगति की नींव होती हैं। महोदय, हमारा देश विषमताओं से भरा है,केंद्र सरकार को ऐसी शैक्षणिक नीतियां बनानी चाहिए जिससे ग्रामीणभारत के विषमतापोषित अभ्यार्थियों की चिकित्साशिक्षा सुनिश्चित हो, कदाचारमुक्त परीक्षाओं का संचालन हो, देश में चिकित्साशिक्षा के क्षेत्र में संसाधनों को विकसित कर सीटों की संख्या बढ़ाई जाएं व स्वास्थ्य~व्यवस्था व चिकित्साशिक्षा के संदर्भ में एक परिपक्व चिंतन के साथ नीतियां बनाये तथा विषमतापोषित ग्रामीण अभ्यार्थियों के लिए समानांतर प्रणाली हों जिससे चिकित्साशिक्षा प्राप्त करने से वंचित न रह जाएं।
अतः ग्रामीण भारत की चिंताजनक स्थिति में स्वरोजगारोन्मुख व रोजगारप्रदत चिकित्साशिक्षा प्राप्त करने के लिए देश की एकमात्र एकल प्रवेश परीक्षा NEETug में ऊपरी आयुसीमा निर्धारित न होने दें व चिकित्साशिक्षा को किसी खास वर्ग की शिक्षा न होने दें जिससे ग्रामीण अभ्यार्थी भी अपनी प्रतिभा का चरम विकाश कर राष्ट्रकल्याण व जनकल्याण में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें व "अंत्योदय" की परिकल्पना साकार हो तथा सामाजिक न्याय के साथ "सबको शिक्षा,अच्छी शिक्षा" वाली सरकार की प्रतिबद्धता पूर्ण हो एवं हमारे देश की जनता को "हम भारत के लोग..." की परिकल्पना पर गर्व हो।
अक्षय आनन्द, भागलपुर, बिहार.
Email~akshayanand2222@gmail.com

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