#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड--04
#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष
#एपिसोड--04
#AgeLimit in NEETug: चिकित्साशिक्षा में परिवारवाद/वंशवाद
सुबह सूरज उगने के साथ हीं जैव वनस्पतियों में हलचल शुरू हो जाती है,पत्ते अपनी बाँहें खोलने लगते हैं और फूल मुस्कुराने लगते हैं। इन्हीं के बीच एक और रंग खिलता है...बच्चों के स्कूल ड्रेस का रंग जो बिना किसी शोर~शराबे के मद्धम~मद्धम गाँव की पगडंडियाँ चलने लगता है। यह वह भारत है जहाँ बच्चे बासी भात या आधा पेट,बिना नास्ता और टिफिन के अधूरी किताब~काँपी को झोले में लटकाए सूरज के साथ दौर लगाते हैं। यह उदासीन भारत नहीं है,यह सपनों से भरा हुआ भारत है,जहां जिजीविषा है,संघर्ष है।
शिक्षा के प्रति सामाजिक उत्तरदायित्व का अभाव बहुत बड़ी विडम्बना है। भले हैं आज हमारा भारतवर्ष वैश्वीकरण का भारत है,भले हीं आज हम वैश्विक बाजार की गिरफ्त में उदारवादी~पूंजीवादी तरीके से विकास की दौर में शामिल हो रहे हैं लेकिन इसकी गिरफ्त में चिकित्साशिक्षा को लेना समाज के लिए घातक होगा। इससे समाज मे हो रही विभाजन की खाई घातक होगी। ग्रामीणभारत के सुदूरवर्ती अंचलों के विद्यार्थियों और शहरों के विद्यार्थियों के शिक्षा के हर चरण में गहरा फर्क है। इसके बावजूद खुली प्रतियोगिता में दोनों को समान रूप से उतरना पड़ता है। शहरों में हर कोई प्राइवेट अंग्रेजी माध्यम की ओर रुख कर रहा है और सरकार भी शिक्षा के निजीकरण पर जोर दे रही है। लेकिन उन सुदूर ग्रामीणभारत के अँचलों में कौन है जो शिक्षा का निवेश करने जाएगा ? कौन गरीब ग्रामीण जनता है जो अपने व अपने बच्चों के लिए इतनी महंगी शिक्षा को खरीद सकेगा।
ग्रामीणभारत की ऐसी विषम परिस्थितियों की स्थिति में चिकित्साशिक्षा के लिये प्रवेश परीक्षा NEETug में ऊपरी आयुसीमा का निर्धारण क्या ग्रामीण विद्यार्थियों की प्रतिभा का गला नहीं घोंटेगा ? ये तो ऐसा हीं जैसे "हाथी, कौआ, मछली, कुत्ता आदि" जानवरों के बीच पेड़ पर चढ़ने की प्रतियोगिता आयोजित हो रही हो...!! सरकारी नीतियाँ ऐसी हों कि सबके लिए चिकित्साशिक्षा सुनिश्चित हों,ऊपरी आयुसीमा की आढ़ में कोई वंचित न रहें। अतः MciAct1956 में 22 जनवरी2018 को हुए संसोधनों पर पुनर्विचार कर यथाशिघ्र निर्धारित उपरी आयुसीमा को निरस्त कर चिकित्साशिक्षा सबके लिए सुनिश्चित किये जायें।
#एपिसोड--04
#AgeLimit in NEETug: चिकित्साशिक्षा में परिवारवाद/वंशवाद
सुबह सूरज उगने के साथ हीं जैव वनस्पतियों में हलचल शुरू हो जाती है,पत्ते अपनी बाँहें खोलने लगते हैं और फूल मुस्कुराने लगते हैं। इन्हीं के बीच एक और रंग खिलता है...बच्चों के स्कूल ड्रेस का रंग जो बिना किसी शोर~शराबे के मद्धम~मद्धम गाँव की पगडंडियाँ चलने लगता है। यह वह भारत है जहाँ बच्चे बासी भात या आधा पेट,बिना नास्ता और टिफिन के अधूरी किताब~काँपी को झोले में लटकाए सूरज के साथ दौर लगाते हैं। यह उदासीन भारत नहीं है,यह सपनों से भरा हुआ भारत है,जहां जिजीविषा है,संघर्ष है।
शिक्षा के प्रति सामाजिक उत्तरदायित्व का अभाव बहुत बड़ी विडम्बना है। भले हैं आज हमारा भारतवर्ष वैश्वीकरण का भारत है,भले हीं आज हम वैश्विक बाजार की गिरफ्त में उदारवादी~पूंजीवादी तरीके से विकास की दौर में शामिल हो रहे हैं लेकिन इसकी गिरफ्त में चिकित्साशिक्षा को लेना समाज के लिए घातक होगा। इससे समाज मे हो रही विभाजन की खाई घातक होगी। ग्रामीणभारत के सुदूरवर्ती अंचलों के विद्यार्थियों और शहरों के विद्यार्थियों के शिक्षा के हर चरण में गहरा फर्क है। इसके बावजूद खुली प्रतियोगिता में दोनों को समान रूप से उतरना पड़ता है। शहरों में हर कोई प्राइवेट अंग्रेजी माध्यम की ओर रुख कर रहा है और सरकार भी शिक्षा के निजीकरण पर जोर दे रही है। लेकिन उन सुदूर ग्रामीणभारत के अँचलों में कौन है जो शिक्षा का निवेश करने जाएगा ? कौन गरीब ग्रामीण जनता है जो अपने व अपने बच्चों के लिए इतनी महंगी शिक्षा को खरीद सकेगा।
ग्रामीणभारत की ऐसी विषम परिस्थितियों की स्थिति में चिकित्साशिक्षा के लिये प्रवेश परीक्षा NEETug में ऊपरी आयुसीमा का निर्धारण क्या ग्रामीण विद्यार्थियों की प्रतिभा का गला नहीं घोंटेगा ? ये तो ऐसा हीं जैसे "हाथी, कौआ, मछली, कुत्ता आदि" जानवरों के बीच पेड़ पर चढ़ने की प्रतियोगिता आयोजित हो रही हो...!! सरकारी नीतियाँ ऐसी हों कि सबके लिए चिकित्साशिक्षा सुनिश्चित हों,ऊपरी आयुसीमा की आढ़ में कोई वंचित न रहें। अतः MciAct1956 में 22 जनवरी2018 को हुए संसोधनों पर पुनर्विचार कर यथाशिघ्र निर्धारित उपरी आयुसीमा को निरस्त कर चिकित्साशिक्षा सबके लिए सुनिश्चित किये जायें।

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