#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_38
समर्पण विद्वान व्यक्ति की भाषा है.
यह जवाबदेही के साथ आपकी जिम्मेदारी है. हमारी कमजोरी ही हमारी नाउम्मीदगी का कारण बनती है. अगर आप ऐसी स्थिति से खुद को बचा कर रखना चाहते हैं तो आपको अपनी शक्तियों को और बढ़ावा देना चाहिए. आपकी शक्ति या ताकत उस समर्पण की उर्जा से आती है जिससे आपके जीवन की हर राह उत्कृष्ट बन जाती है. बहुत कम लोग बिना किसी व्यवधान या परेशानी के सफलता की राह को पार कर पाते हैं. इसमें अगर कोई उनके लिए सबसे बड़े सहायक के तौर पर काम करता है तो वह है उनका समर्पण भाव. समर्पण का अर्थ है किसी भी तरह से पसंद या उलझना नहीं है. यह तो किसी के साथ एकत्रित होने का भाव है. जब आप किसी व्यक्ति या उद्देश्य के साथ एकीकृत हो जाते हैं तो वहां आपका स्वार्थ समाप्त हो जाता है. अगर आपके भीतर की ऊर्जा न्यूनतम स्तर पर है तो मुमकिन है कि बीच रास्ते में ही आपका समर्पण दम तोड़ दे. पर अगर आप अपने भीतर मौजूद उच्चतम ऊर्जा का अनुसरण करते हैं तो आपकी हर कमजोरी आपके मार्ग से स्वयं घटती चली जाएगी और वह धीरे-धीरे आपकी उत्कृष्ट ऊर्जा का हिस्सा बन जाएगी. ऐसी स्थिति आपको आध्यात्मिक रूप से एकीकृत करती है. यह इसलिए जरूरी है क्योंकि बिना एकीकरण के जीवन बेहद खोकला लगता है. जहां समर्पण होता है वहां किसी प्रकार का कोई भ्रम नहीं होता. हम चीजों को स्पष्ट देख पाते हैं. संसार वह नहीं जो दिखाई देता है अपितु हम इसे वैसे देखते हैं जैसा हमारा चंचल मस्तिक हमें दिखाना चाहता है. हमारा मस्तिष्क विचारों और शब्दों से भरा हुआ है, जिसके जरिए हम अपने अनुभव बयान करते हैं. ये शब्द हमारी यादाश्त को भी प्रभावित करते हैं. हम अतीत से अपना भविष्य देख लेते हैं. इसलिए हम इन शब्दों द्वारा बिछाए गए भ्रम जाल में उलझते हैं. हमें बड़ी समझदारी के साथ इन्हें स्पष्ट करना आना चाहिए. समर्पण के जरिए हम अपने जीवन की हर राह को संतुलित कर सकते हैं, फिर चाहे वह परिवारिक, सामाजिक, या आध्यात्मिक जीवन ही क्यों ना हो. मनुष्य होने के नाते यदि यही तो हमारी कला है. जब आप पूर्ण होते हैं, तभी वास्तविक रूप में जीवंत होते हैं.
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