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#गाँधी_का_स्वराज 🇮🇳


“स्वराज एक पवित्र शब्द है; वह एक वैदिक शब्द है, जिसका अर्थ आत्म-शासन और आत्म-संयम है. अंग्रेजी शब्द ‘इंडिपेंडेंस’ अक्सर सब प्रकार की मर्यादाओं से मुक्त निरंकुश आजादी का या स्वच्छंदता का अर्थ देता है; वह अर्थ स्वराज शब्द में नहीं है.”


...मेरा स्वराज्य तो हमारी सभ्यता की आत्मा को अक्षुण्ण रखना है. मेरे...हमारे...सपनों के स्वराज्य में जाति (रेस) या धर्म के भेदों का कोई स्थान नहीं हो सकता. अगर स्वराज्य का अर्थ हमें सभ्य बनाना और हमारी सभ्यता को अधिक शुद्ध तथा मजबूत बनाना ना हो, तो वह किसी कीमत का नहीं होगा.

सच्चा स्वराज्य थोड़े लोगों के द्वारा सत्ता प्राप्त कर लेने से नहीं,बल्कि जब सत्ता का दुरुपयोग होता हो तब सब लोगों के द्वारा उसका प्रतिकार करने की क्षमता प्राप्त करके हासिल किया जा सकता है. 

दूसरे शब्दों में,स्वराज्य जनता में इस बात का ज्ञान पैदा करके प्राप्त किया जा सकता है कि सत्ता पर कब्जा करने और उसका नियमन करने की क्षमता उसमें है। “वह स्वराज्य, जिसे पाने के लिए अनवरत प्रयत्न और बचाए रखने के लिए सतत जागृति नहीं चाहिए, स्वराज्य कहलाने के लायक ही नहीं है।”

 स्वराज्य का अर्थ है सरकारी नियंत्रण से मुक्ति होने के लिए लगातार प्रयत्न करना, फिर वह नियंत्रण विदेशी सरकार का हो या स्वदेशी सरकार का. यदि स्वराज्य हो जाने पर लोग अपने जीवन की हर छोटी बात के नियमन के लिए सरकार का मुंह ताकना शुरू कर दें, तो वह स्वराज्य-सरकार किसी काम की नहीं होगी.

 मेरे सपने का स्वराज्य तो गरीबों का स्वराज्य होगा. जीवन की जिन आवश्यकताओं का उपभोग राजा और अमीर लोग करते हैं, वही तुम्हें(आम जन को) भी सुलभ होनी चाहिए; इसमें फर्क के लिए स्थान नहीं हो सकता. अपनी संपत्ति का उपयोग इस तरह करो कि पड़ोसी की संपत्ति को कोई हानि न पहुंचे.

स्वराज्य का अर्थ विदेशी नियंत्रण से पूरी मुक्ति और पूर्ण आर्थिक स्वतंत्रता है. सच्ची लोकसत्ता का स्वराज्य कभी भी असत्यमय और हिंसक साधनों से नहीं आ सकता. अहिंसा आधारित स्वराज्य में लोगों को अपने अधिकारों का ज्ञान न हो तो कोई बात नहीं, लेकिन उन्हें अपने कर्तव्यों का ज्ञान अवश्य हो.

नागरिकता के अधिकार सिर्फ उन्हीं को मिल सकते हैं, जो जिस राज्य में वे रहते हों उसकी सेवा करते हों और सिर्फ वे ही इन अधिकारों के साथ पूर्ण न्याय कर सकते हैं. किसी राष्ट्रीय समाज के स्वराज्य का अर्थ उस समाज के विभिन्न व्यक्तियों के स्वराज्य (अर्थात आत्म-शासन) का योग ही है और ऐसा स्वराज्य व्यक्तियों के द्वारा नागरिकों के रूप में अपने कर्तव्य के पालन से ही आता है.

अहिंसा पर आधारित स्वराज्य में कोई किसी का शत्रु नहीं होता, सारी जनता की भलाई का सामान्य उद्देश्य सिद्ध करने में हर एक अपना अभीष्ट योग देता है,सुसंघटित राज्य में किसी के न्याय का किसी दूसरे के द्वारा अन्यायपूर्वक छीना जाना असंभव होना चाहिए और कभी ऐसा हो जाए तो अपहर्ता को अपदस्थ करने के लिए हिंसा का श्रेय लेने की जरूरत नहीं होनी चाहिए.


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