#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_47

अनेकान्तवाद दर्शन ;

अनेकान्तवाद दर्शन की उपादेयता यह है कि वह मनुष्य को दुराग्रही होने से बचाता है, उसे यह शिक्षा देता है कि केवल तुम ही ठीक हो, ऐसी बात नहीं; शायद, वे लोग भी सत्य ही कह रहे हों, जो तुम्हारा विरोध करते हैं। 
यह दर्शन मनुष्य के भीतर बौद्धिक अहिंसा को प्रतिष्ठित करता है, संसार में जो अनेक मतवाद फैले हुए हैं, उनके भीतर सामंजस्य को जन्म देता है, तथा वैचारिक भूमि पर जो कोलाहल और कटुता उत्पन्न होती है, उससे विचारकों के मस्तिष्क को मुक्त रखता है.
अपने ऊपर एक प्रकार का विरल संदेह, विरोधी और प्रतिपक्षी के मतों के लिए प्रकार की श्रद्धा तथा यह भाव कि, कदाचित प्रतिपक्षी का मत ही ठीक हो, यह एक अनेकान्तवादी मनुष्य के प्रमुख लक्षण हैं.

गाँधी जी कहते हैं ;
चूंकि अनेकान्तवाद से परस्पर विरोधी बातों के बीच सामंजस्य आता है तथा विरोधियों के प्रति भी आदर की वृद्धि होती है, मेरा  अनुभव है कि अपनी दृष्टि से मैं सदा सत्य ही होता हूं, किंतु, मेरे इमानदार आलोचक तब भी मुझमें गलती देखते हैं. 
पहले मैं अपने को सही और उन्हें अज्ञानी मान लेता था. किंतु अब मैं मानता हूं कि अपनी-अपनी जगह हम दोनों ठीक हैं. कई अंधों ने हाथी को अलग-अलग टटोलकर उसका जो वर्णन किया था वह दृष्टान्त अनेकांतवाद का सबसे अच्छा उदाहरण है.
पहले मैं मानता था कि मेरे विरोधी अज्ञान में है. आज मैं विरोधियों को प्यार करता हूं, क्योंकि अब मैं अपने को विरोधियों की दृष्टि से भी देख सकता हूं. मेरा अनेकांतवाद, सत्य और अहिंसा, इन युगल सिद्धांतों का ही परिणाम है.

जब तक संसार के विचारक और शासक स्याद्वादी भाषा का प्रयोग नहीं सीखते, तब तक ना तो संसार के धर्मों में एकता होगी, ना विश्व के विचार और मतवाद एक होंगे. सह-अस्तित्व, सह-जीवन और पंचशील, इन सबका आधार अनेकांतवाद ही हो सकता है.

Comments

Popular posts from this blog

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड--07

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड--05

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड--03