#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड--06
#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष
#एपिसोड-06
दीपावली- ये कैसी दिवाली..?? कहीं दीप जले कहीं अरमान
सर्वप्रथम आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं, ईश्वर हम सभी को तिमिर सिंधु से प्रकाश क्षेत्र की ओर की राह प्रशस्त करें, प्रेरणा दें, मार्गदर्शन करें व संघर्ष करने की शक्ति दें क्योंकि ईश्वर हीं अंतिम सत्य है जहां से हमें प्रेरणा मिलती है व एक आशा व दृढ़विश्वास होता है कि जरूर मैं भी.... हाँ हमसब अपने मानवीय सफलताओं के परचम लहरायेंगे व मानवता को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएंगे....
पुनः आप सबको दिल की गहराइयों से शुभ शुभकामनाएं...
दूर जलता हुआ एक दिया भले हीं सबको रोशनी नहीं दे सकता पर अंधेरे से जूझने की ताकत तो देता हिं है इसलिए खूब दीप जलाएं, अपने दिल और दरमियाँ को रौशन करें।
कवि कितने हृदयविशल होते हैं, कितने खुले दिल के होते हैं व कितने विचारवान होते हैं कि वो अपनी कल्पनाओं को ऐसे शब्दों का रूप देते हैं कि वो छंद सदाबहार हो जाते हैं । उन रचनाओं की तेज कभी फीकी न पड़ती है, वो सदा परिस्थितियों की पहचान होती हैं व युगयुगान्तर मानवजाति को प्रेरित करते हुए मार्गदर्शन करते रहते हैं, ऐसी हिं रचना के धनी हमें आज गोपाल दास नीरज की लिखी एक कविता याद आयी जो उन्होंने दीपों के संदर्भ में लिखी थी,
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
नई ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन-स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण-द्वार जगमग,
उषा जा न पाए, निशा आ ना पाए।
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यों ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए।
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ़ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आएँ नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे हृदय में उजेरा,
कटेगे तभी यह अँधेरे घिरे अब
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
परिस्थितिजन्य विडम्बनाओं के बीच हमें आशाओं का दामन नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि कष्ट, संघर्ष, बाधाएं हमें कमज़ोर नहीं, बल्कि और परिपक्व बनाते हैं व इस जिंदगी का मतलब हीं क्या रह जायेगा, अगर हम में लगातार कोशिश करने की हिम्मत हीं न रहे ? क्योंकि परिंदे शुक्रगुजार हैं पतझड़ के भी दोस्तो..! तिनके कहां से लाते, अगर सदा बहार रहती..!! हारने जीतने से कुछ नहीं होता साथियों,
खेल हर साँस पे है दाँव लगाते रहना। आदमी बुलबुला है पानी का और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है, फिर उभरता है... फिर से बहता है... न समंदर निगला सका इसको, न तवारीख़ तोड़ पाई है, वक्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का...
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार
जीना इसी का नाम है किसी की ...
🚩🌺🚩
शुभ दीपावली...
🌋🌋🌋🌋🌋
#एपिसोड-06
दीपावली- ये कैसी दिवाली..?? कहीं दीप जले कहीं अरमान
सर्वप्रथम आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएं, ईश्वर हम सभी को तिमिर सिंधु से प्रकाश क्षेत्र की ओर की राह प्रशस्त करें, प्रेरणा दें, मार्गदर्शन करें व संघर्ष करने की शक्ति दें क्योंकि ईश्वर हीं अंतिम सत्य है जहां से हमें प्रेरणा मिलती है व एक आशा व दृढ़विश्वास होता है कि जरूर मैं भी.... हाँ हमसब अपने मानवीय सफलताओं के परचम लहरायेंगे व मानवता को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएंगे....
पुनः आप सबको दिल की गहराइयों से शुभ शुभकामनाएं...
दूर जलता हुआ एक दिया भले हीं सबको रोशनी नहीं दे सकता पर अंधेरे से जूझने की ताकत तो देता हिं है इसलिए खूब दीप जलाएं, अपने दिल और दरमियाँ को रौशन करें।
कवि कितने हृदयविशल होते हैं, कितने खुले दिल के होते हैं व कितने विचारवान होते हैं कि वो अपनी कल्पनाओं को ऐसे शब्दों का रूप देते हैं कि वो छंद सदाबहार हो जाते हैं । उन रचनाओं की तेज कभी फीकी न पड़ती है, वो सदा परिस्थितियों की पहचान होती हैं व युगयुगान्तर मानवजाति को प्रेरित करते हुए मार्गदर्शन करते रहते हैं, ऐसी हिं रचना के धनी हमें आज गोपाल दास नीरज की लिखी एक कविता याद आयी जो उन्होंने दीपों के संदर्भ में लिखी थी,
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
नई ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन-स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण-द्वार जगमग,
उषा जा न पाए, निशा आ ना पाए।
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यों ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए।
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ़ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आएँ नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे हृदय में उजेरा,
कटेगे तभी यह अँधेरे घिरे अब
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए
परिस्थितिजन्य विडम्बनाओं के बीच हमें आशाओं का दामन नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि कष्ट, संघर्ष, बाधाएं हमें कमज़ोर नहीं, बल्कि और परिपक्व बनाते हैं व इस जिंदगी का मतलब हीं क्या रह जायेगा, अगर हम में लगातार कोशिश करने की हिम्मत हीं न रहे ? क्योंकि परिंदे शुक्रगुजार हैं पतझड़ के भी दोस्तो..! तिनके कहां से लाते, अगर सदा बहार रहती..!! हारने जीतने से कुछ नहीं होता साथियों,
खेल हर साँस पे है दाँव लगाते रहना। आदमी बुलबुला है पानी का और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है, फिर उभरता है... फिर से बहता है... न समंदर निगला सका इसको, न तवारीख़ तोड़ पाई है, वक्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का...
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार
जीना इसी का नाम है किसी की ...
🚩🌺🚩
शुभ दीपावली...
🌋🌋🌋🌋🌋
Comments
Post a Comment