#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_23
#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष
#एपिसोड_23
#खतों_का_सिलसिला... से अमृता का एक खत इमरोज़ के नाम...
प्यार के उन पथिकों के लिए.....
जिन्होंने राह के काँटे नहीं गिने.....
मंज़िल की परवाह नहीं की.....
किया तो सिर्फ प्यार......जिया तो सिर्फ प्यार......
#अमृता_की_याद_में
यह मेरा उम्र का ख़त व्यर्थ हो गया। हमारे दिल ने महबूब का जो पता लिखा था, वह हमारी किस्मत से पढ़ा न गया। .....तुम्हारे नये सपनों का महल बनाने के लिए अगर मुझे अपनी जिंदगी खंडहर भी बनानी पड़े तो मुझे एतराज नहीं होगा।
जो चार दिन जिंदगी के दिए हैं, उनमें से दो की जगह तीन आरजू में गुजर गए और बाकी एक दिन सिर्फ इन्तजार में ही न गुजर जाए।
अनहोनी को होनी बना लो मिर्जा।.....
.....अमृता
तुम्हारा ख़त मिला।
जीती दोस्त।
मैं तुमसे गुस्से नहीं हूँ। तुम्हारा मेल दोस्ती की हद को छू गया। दोस्ती मुहब्बत की हद तक गई। मुहब्बत इश्क की हद तक। और इश्क जनून की हद तक। और जिसने यह जनून की हद देखी हो, वह कभी गुस्से नहीं हो सकता। अगर यह अलगाव कोई सजा है तो यह सजा मेरे लिए है, क्योंकि यह रास्ता मेरा चुना हुआ नहीं है। मेरा चुना हुआ रास्ता मेल था। अलगाव का यह रास्ता तुम्हारा चुना हुआ है, तुम्हारा अपना चुनाव, इसलिए तुम्हारे लिए यह सजा नहीं है.....
.....अमृता
....तुम मुझे उस जादुओं से भरी वादी में बुला रहे हो जहाँ मेरी उम्र लौटकर नहीं आती। उम्र दिल का साथ नहीं दे रही है। दिल उसी जगह पर ठहर गया है, जहाँ ठहरने का तुमने उसे इशारा किया था। सच, उसके पैर वहाँ रूके हुए हैं।
पर आजकल मुझे लगता है, एक-एक दिन में कई-कई बरस बीते जा रहे हैं, और अपनी उम्र के इतने बरसों का बोझ मुझसे सहन नहीं हो रहा है...
....अमृता
....मेरे सारे रास्ते कठिन हैं। तुम्हें भी जिस रास्ते पर मिला, सारे का सारा कठिन है, पर यही मेरा रास्ता है।
.....मुझ पर और भरोसा करो
मेरे अपनत्व पर पूरा एतबार करो...
जीने की हद तक तुम्हारा...
तुम्हारे जीवन का जामिन,
तुम्हारा जीती।
...ये अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य का पल्ला तुम्हारे आगे फैलाता हूँ, इसमें अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को डाल दो।...
....इमरोज़
#एपिसोड_23
#खतों_का_सिलसिला... से अमृता का एक खत इमरोज़ के नाम...
प्यार के उन पथिकों के लिए.....
जिन्होंने राह के काँटे नहीं गिने.....
मंज़िल की परवाह नहीं की.....
किया तो सिर्फ प्यार......जिया तो सिर्फ प्यार......
#अमृता_की_याद_में
यह मेरा उम्र का ख़त व्यर्थ हो गया। हमारे दिल ने महबूब का जो पता लिखा था, वह हमारी किस्मत से पढ़ा न गया। .....तुम्हारे नये सपनों का महल बनाने के लिए अगर मुझे अपनी जिंदगी खंडहर भी बनानी पड़े तो मुझे एतराज नहीं होगा।
जो चार दिन जिंदगी के दिए हैं, उनमें से दो की जगह तीन आरजू में गुजर गए और बाकी एक दिन सिर्फ इन्तजार में ही न गुजर जाए।
अनहोनी को होनी बना लो मिर्जा।.....
.....अमृता
तुम्हारा ख़त मिला।
जीती दोस्त।
मैं तुमसे गुस्से नहीं हूँ। तुम्हारा मेल दोस्ती की हद को छू गया। दोस्ती मुहब्बत की हद तक गई। मुहब्बत इश्क की हद तक। और इश्क जनून की हद तक। और जिसने यह जनून की हद देखी हो, वह कभी गुस्से नहीं हो सकता। अगर यह अलगाव कोई सजा है तो यह सजा मेरे लिए है, क्योंकि यह रास्ता मेरा चुना हुआ नहीं है। मेरा चुना हुआ रास्ता मेल था। अलगाव का यह रास्ता तुम्हारा चुना हुआ है, तुम्हारा अपना चुनाव, इसलिए तुम्हारे लिए यह सजा नहीं है.....
.....अमृता
....तुम मुझे उस जादुओं से भरी वादी में बुला रहे हो जहाँ मेरी उम्र लौटकर नहीं आती। उम्र दिल का साथ नहीं दे रही है। दिल उसी जगह पर ठहर गया है, जहाँ ठहरने का तुमने उसे इशारा किया था। सच, उसके पैर वहाँ रूके हुए हैं।
पर आजकल मुझे लगता है, एक-एक दिन में कई-कई बरस बीते जा रहे हैं, और अपनी उम्र के इतने बरसों का बोझ मुझसे सहन नहीं हो रहा है...
....अमृता
....मेरे सारे रास्ते कठिन हैं। तुम्हें भी जिस रास्ते पर मिला, सारे का सारा कठिन है, पर यही मेरा रास्ता है।
.....मुझ पर और भरोसा करो
मेरे अपनत्व पर पूरा एतबार करो...
जीने की हद तक तुम्हारा...
तुम्हारे जीवन का जामिन,
तुम्हारा जीती।
...ये अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य का पल्ला तुम्हारे आगे फैलाता हूँ, इसमें अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को डाल दो।...
....इमरोज़


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