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Showing posts from May, 2022

हमारी कविता संग्रह : आपकी दीद, मेरी ईद ; ईद मुबारक

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मेरी कविता संग्रह ; #अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष ; #एपिसोड_62 “आपकी दीद, मेरी ईद” जबजब आपकी दीद होती है, तबतब मेरी ईद होती है आपको पता है.!! दिन में छप्पन बार मेरी ईद होती है यूँ तो एक पल के लिए भी दूर नहीं हुआ आपसे लेकिन ब्रह्मानन्द होती है जब आपकी दीद होती है आपको पता है.!! दिन में छप्पन बार मेरी ईद होती है लोग चाँद की उपमा देते हैं, चँदा कहते हैं प्रेयसी को मुझे चाँद भी फीका लगता है, जब आपकी दीद होती है आपको पता है.!! दिन में छप्पन बार मेरी ईद होती है लोग सब्र करते हैं औ रोजा रखते हैं, चाँद देखने के लिए हमारी तो तब ही ईद होती है, जब आपकी दीद होती है आपको पता है.!! दिन में छप्पन बार मेरी ईद होती है

मेरी कविता संग्रह : घुटता चंद, विह्वल चकोर

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हमारी कविता संग्रह से ; #अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष ; #एपिसोड_61 “घुटता चाँद, विह्वल चकोर” विह्वल हो जाता हूँ विस्मृत औ व्यथित हो जाता हूँ जब बादलों में छुपे चाँद को घुटते हुए देखता हुँ अपने हाथों से बादलों को एकतरफ कर देने की कोड़ी कल्पना, तेज हवाएं चलने की उद्विग्न कामना दिल से जब बादलों में छुपे चाँद को घुटते हुए देखता हुँ… यूँ तो बहुत देखे बादलों में उगते और डूबते चाँद को, पर अब विचलित सा हो जाता है मन जब बादलों में छुपे चाँद को घुटते हुए देखता हुँ... सुनसान रातें, तारों का पहरा उसपर वो अकेला चाँद, उसकी आकुलता, उसकी व्यथा कोई आकुल ही जाने जब बादलों में छुपे चाँद को घुटते हुए देखता हुँ… क्यूँ बदल घिरता, क्यूँ काली घटा छाती? यह सोच-सोच के चाँद बेचारा घटता-बढ़ता रहता आकर में जब बादलों में छुपे चाँद को घुटते हुए देखता हुँ… चाँद की पीड़, चाँद का दर्द चाँद का भटकना काली रातों में, कोई क्या जाने, कोई क्या माने सिसकते चकोर की तितिक्षा जब बादलों में छुपे चाँद को घुटते हुए देखता हुँ…