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Showing posts from December, 2021

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_58

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हमारी कविता संग्रह ; “ बता दीजिए हमें ” चाहने वालों से छुप-छुप के क्या छुपाना,, बता दीजिए हमें भी दिलों में क्या है आपके यूँ न खामोश रहकर तड़पाइये मुझे पल-पल हम भी तो कहेंगे आपसे अपने दिल की बातें बता दीजिए हमें… ये वादियाँ, ये सरहदें, ये दुरियाँ-खामोशी भी क्या खूब है आपका हर पल मुस्कुराना भी बता दीजिए हमें… मेरी खामोशी-बेसब्री मेरे सब्र की इंतहा है राज की बातें हमराज से यूँ छुपाना कैसा बता दीजिए हमें… कुछ दिन से चुप हैं,यूँ खामोश बेवजह आप बयां करने से भी दिल का बोझ कम होता है बता दीजिए हमें… मेरे करीब आइए मुझसे कहिए कानों में हौले यूँ गैर सुन लेंगे तो बात पर बात बन जाएगी बता दीजिए हमें… हम हैं, आप हैं  और  हैं  ये शुष्क फिजाये इतने नाराज किस बात पे हैं, राज क्या है बता दीजिए हमें… आपको ही सुनता, आपको  ही  पढ़ता  हूं ये काम छुप-छुप के करके तंग आ गया हूँ बता दीजिए हमें… #गुजारिश   #बेसब्री   #आशाएं

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_57

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हमारी कविता संग्रह; “ राही राहों में ” बढ़ रहे हैं मंजिल की ओर राहें बहुत दलदली हैं शुष्क फिजायें भी गिरने का भी डर रफ्तार तेज करूँ तो पाँव जमीं में धस जाते जैसे कींचड़ में पैर रफ्तार धीमी करूँ तो दिल में बेचैनी भी होती है क्या करूँ बड़ी उलझन है ले लील भले ही राह मुझे लौटना नहीं स्वीकार मुझे  - बड़ी विस्मय की बात ये बड़ी अनोखी है बात ये वादे किये,न फिरूँ पीछे हिम्मत है,न तकूँ पीछे भले हीं कुछ देरी हो, चिंता भी हो पर सफर की शाम मंजिल पे हीं हो जीवन की राहें ऐसी भी कहीं काँटे,कहीं कंकड़ भी सफर में रही अब सोचे क्या मंजिल की धुन,चिंता क्या राही राहों में घबराना ना #आशा   #अपनापन   #बेचैनी   #क्षुधा

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_56

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हमारी कविता संग्रह ; " आपबीती " जल था तरल था अविरल था बहा करता था सबके   अंतर   में  अपनों के अपनेपन में वेदनाओं की ठिठुरती ठंडक ने बर्फ बना डाला अचल, नुकीला सा निर्जन सा पड़ा हुआ किसी कोने में, बागों में पत्तों तले, किसी राही के पैरों तले जाने-अनजाने किसी कोमल पैरों को ठोकर लगी खून बहे, चीख उठा वो पत्थर हो क्या..!! जटिल.! कायर..! स्वार्थी.! सुनता रहा मौन हो मैं मौन पड़ा सुनता रहा सबकुछ जो प्रिय नहीं था आक्रोश थी, दर्द था शब्दों में कसक थी पहले से पीड़ा से भरा था वो भी, हाँ वो भी काश मेरे भी मौन को कोई सुन लेता, पढ़ लेता जीवन मे सब मिलते हैं पढ़े-लिखे विद्वतजन पर मेरे सम्मुख आते हीं अनपढ़ से हो जाते हैं कोई न पढ़ पता मेरे मौन को सचमुच अनपढ़.! भावनाशून्य.! तटस्थ..! उदासीन.!! क्या सच मे मित्रवत- मानवीय भावनाएं नहीं.!! अचंभित था मैं, उनके शब्दों से नहीं उसमे छिपी संवेदनाओं से कितना दर्द छुपा था अपनों के लिए उसके मन में घायल थी हो दिल के हर कोने से सभी तृष्णा को समेटे आकाश की ओर देखती कपकपाते होठ बुदबुदा रहे थे “रहम करो खुदा रहम…” मुझे तरस आई खुद पर खुद के पत्...