#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_36
मूल्यांकन में समग्रता का अभाव वर्तमान समय की ये विडम्बना है कि एक दूसरे का चारित्रिक विश्लेषण करते समय अत्यंत जल्दबाजी कर बैठते हैं, आमुख व्यक्ति के जीवन मे घटित किसी विशेष परिस्थितियों में उसके द्वारा किये (पूर्ण रूप से अव्यक्त) व्यवहार के आधार पर उसके पूरे जीवन का मूल्यांकन कर बैठते हैं, जबकि किसी व्यक्ति के चारित्रिक विश्लेषण करते वक्त उसके जीवन की समग्रता का लोप नहीं होने देना चाहिए। क्योंकि किसी विशेष परिस्थितियों में हम एक विशेष प्रकार का आचरण करने लगते हैं। उस आचरण से हमारे सम्पूर्ण जीवन का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। आइए जीवन के विभिन्न पहलुओं में कुछ का विश्लेषण थोड़ा थोड़ा करते हैं : ★ जब परिस्थियाँ आनन्ददाति रहती हैं तो हम विभिन्न अभिव्यक्ति द्वारा अपनी खुशी व्यक्त करते हैं। इस अभिव्यक्ति पर अब कोई ये कहने लगे कि ये अमुक आदमी हमेशा तरह खुश ही रहता है, बात बात पर मुस्कुराता ही रहता है, ये अतिउत्साही है, एकदम पागल आदमी है... ★जब परिस्थियाँ दुखदाई होती हैं, शोकजन्य होती है तो हम चिंतित रहते हैं, व्यथित रहते हैं, शोकाकुल रहते हैं और खूब रोते भी हैं। अब कोई ये कहने ल...