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Showing posts from March, 2021

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_36

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मूल्यांकन में समग्रता का अभाव वर्तमान समय की ये विडम्बना है कि एक दूसरे का चारित्रिक विश्लेषण करते समय अत्यंत जल्दबाजी कर बैठते हैं, आमुख व्यक्ति के जीवन मे घटित किसी विशेष परिस्थितियों में उसके द्वारा किये (पूर्ण रूप से अव्यक्त) व्यवहार के आधार पर उसके पूरे जीवन का मूल्यांकन कर बैठते हैं, जबकि किसी व्यक्ति के चारित्रिक विश्लेषण करते वक्त उसके जीवन की समग्रता का लोप नहीं होने देना चाहिए। क्योंकि किसी विशेष परिस्थितियों में हम एक विशेष प्रकार का आचरण करने लगते हैं। उस आचरण से हमारे सम्पूर्ण जीवन का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। आइए जीवन के विभिन्न पहलुओं में कुछ का विश्लेषण थोड़ा थोड़ा करते हैं : ★ जब परिस्थियाँ आनन्ददाति रहती हैं तो हम विभिन्न अभिव्यक्ति द्वारा अपनी खुशी व्यक्त करते हैं। इस अभिव्यक्ति पर अब कोई ये कहने लगे कि ये अमुक आदमी हमेशा तरह खुश ही रहता है, बात बात पर मुस्कुराता ही रहता है, ये अतिउत्साही है, एकदम पागल आदमी है... ★जब परिस्थियाँ दुखदाई होती हैं, शोकजन्य होती है तो हम चिंतित रहते हैं, व्यथित रहते हैं, शोकाकुल रहते हैं और खूब रोते भी हैं। अब कोई ये कहने ल...

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_35

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ये सच है कि हमारी व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय अथवा वैश्विक सोच की सफल कर्मनिष्ठ प्रतिभा अपने शैक्षणिक अथवा अनुसंधानिक भौतिक चर्मोत्कर्ष पर कितने हीं दम्भ क्यूँ न भर लें, आत्मविश्वासी हो जाएं, आत्मनिर्भर हो जायें, हम एक इंसान होने की राह में बहुत बहुत पीछे हैं. वैज्ञानिक अनुसंधान का प्रमाणिक प्रयास कहता है कि धरती पर जीवन का प्रारंभ 2000 करोड़ वर्ष पहले हुई, तब से आज तक विभिन्न प्राकृतिक अथवा मानवजनित भीषण विभीषिका से जूझते हुए जीवन का कार्मिक विकाश होते हुए हम आज की सभ्य कही जाने वाली सभ्यता के पड़ाव में पहुँचे हैं. वर्तमान में सभी प्रकार की प्रगति अपने चर्मोत्कर्ष पर है, चाहे अंतरिक्ष अनुसंधान की बात हो, मानव के भौतिक सुखों का विकल्पों की बात हो,शैक्षणिक, चिकित्सीय हो, सम्वाद के विभिन्न आयाम की बात हो अन्य संस्थानगत हो, अफसोस इतने चर्मोत्कर्ष के उपरांत असंख्य लोग भूख से असामयिक मृत्यु के शिकार हो रहे हैं, असंख्य लोगों जो जीने के लिए भी भोजन की दरकार है और बहुत सी हृदयविदारक विषंगतियाँ... आज आर्थिक विषमता के कारण गरीब और अमीरों के बीच खाई बढ़ती जा रही है, ये विसंगतियाँ ही सभी समस्या क...

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_34

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अपात्र नेतृत्व, गुमराह युवान और कराहता जनहित निदा फाजली की एक कृति जो आज के हमारे समकक्ष युवान साथियों पर क्या खूब जचती है... अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं रुख हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है अपने ही घर में, किसी दूसरे घर के हम हैं | वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से किसको मालूम, कहाँ के हैं, किधर के हम हैं चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब सोचते रहते हैं, किस राहगुज़र के हम हैं गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम है हमारे युवान साथी क्या सचमुच इतने हल्के जमीर के हो गए...!! ठहरिए, सोचिए, नहीं तो आज का बुद्धिमान प्रपंची नेतृत्व हमें कहिं का नहीं छोड़ेगा, वर्तमान में वो खुद के लिए आपका उपयोग करेगा फिर अपने पाल्यों के लिए निबंधित करेगा... हे भारत ! राष्ट्र के प्रति अपने नैतिक कर्तव्यों के निर्वहन से न कतराएं, न घबरायें, अपनी हिम्मत हारती जिजीविषा से कहें #डटे_रहो व अपनी अंतरात्मा को हमेशा स्पंदित करते रहें अपने उत्तरदायित्व के प्रति। अपनी प्राथमिकताऐं निश्चित करें और कदम बढ़ाएं...