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Showing posts from July, 2021

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड44

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गुरु पूर्णिमा ; 23 जुलाई 2021 “बुद्धि  जिसे  लाख  कोशिश  करने  पर  भी  नहीं  समझ  पाती, हृदय  उसे  अचानक  देख  लेता  है. विद्या  समुद्र  की  सतह  पर  उठती  हुई  तरंगों  का  नाम  है. किंतु, अनुभूति  समुद्र  की  अन्तरात्मा  में  बसती  है. अनुभूति  का  एक  कण  कई  टन  ज्ञान  से  कहीं  अधिक  मूल्यवान  है. जिसे  अनुभूति  प्राप्त  हो  जाती  है, ज्ञान का  द्वार  उसके  सामने  स्वयं  उन्मुक्त  हो  जाता  है  और  सारी  विधाएं  उसे  स्वयमेव  उपलब्ध  हो  जाती  हैं.” ~"संस्कृति के चार अध्याय"/ दिनकरजी गुरु  वही  सच्चा  जो  हमारे  अंदर  अनुभूति  (संवेदना )  को  प्रज्वलित  करे. 🙏🙏

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_43

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औपनिषदिक विचारधारा से जब बौद्ध और जैन धर्म निकले, तब उन्होंने सन्यास को बहुत अधिक महत्व दे डाला और लोकाराधना का महत्व उसी परिमाण में न्यून हो गया। तब के भारतवासी कर्मठता को हीन, गृहस्थ्य को मलिन तथा सन्यास को देदीप्यमान धर्म समझने के आदी हो गए।  तिलक हिंदुओं की पतनशीलता से दुखी थे। वे पराधीनता से क्षुब्ध थे। अतएव गीता की व्याख्या के बहाने उन्होंने समस्त हिंदू-दर्शन को मथकर उसे नवीन कर दिया तथा हिंदू-जाति में वह प्रेरणा भर दी, जिससे मनुष्य प्रतिकूल परिस्थितियों पर विजय पाता है, जिससे कर्तव्याकर्तव्य के निश्चयन में दार्शनिक सूक्ष्मताएँ उसके मार्ग का विरोध नहीं कर सकतीं तथा जिससे वह परिस्थितियों के अनुसार धर्माधर्म का ठीक-ठीक समाधान कर पाता है।  गीता रहस्य में तिलक जी ने स्पष्ट घोषणा की कि गीता का उद्देश्य निवृत्ति नहीं, प्रवृत्ति का प्रतिपादन है। तिलक जी ने यह बतलाया कि योग का अर्थ गीता में कर्म है। योगी और कर्मयोगी दोनों शब्द गीता में समानार्थक हैं और इनका अर्थ युक्ति से कर्म करने वाला होता है।  तिलक जी ने हिंदुओं  के सामने धर्म का व्यावहारिक पक्ष उपस्थित ...

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_42

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“तीसरी कसम” ~ फणीश्वरनाथ रेणु जी की रचना हिरामन गाड़ीवान की पीठ में गुदगुदी लगती है... पिछले बीस साल से गाड़ी हांकता है हिरामन. बैलगाड़ी. सीमा के उस पार, मोरंग राज नेपाल से धान और लकड़ी ढो चुका है. कंट्रोल के ज़माने में चोरबाज़ारी का माल इस पार से उस पार पहुंचाया है. लेकिन कभी तो ऐसी गुदगुदी नहीं लगी पीठ में! कंट्रोल का ज़माना! हिरामन कभी भूल सकता है उस ज़माने को! एक बार चार खेप सीमेंट और कपड़े की गांठों से भरी गाड़ी, जोगबानी में विराटनगर पहुंचने के बाद हिरामन का कलेजा पोख्ता हो गया था. फारबिसगंज का हर चोर-व्यापारी उसको पक्का गाड़ीवान मानता. उसके बैलों की बड़ाई बड़ी गद्दी के बड़े सेठ जी ख़ुद करते, अपनी भाषा में. गाड़ी पकड़ी गई पांचवीं बार, सीमा के इस पार तराई में. महाजन का मुनीम उसी की गाड़ी पर गांठों के बीच चुक्की-मुक्की लगा कर छिपा हुआ था. दारोगा साहब की डेढ़ हाथ लंबी चोरबत्ती की रौशनी कितनी तेज़ होती है, हिरामन जानता है. एक घंटे के लिए आदमी अंधा हो जाता है, एक छटक भी पड़ जाए आंखों पर! रौशनी के साथ कड़कती हुई आवाज ‘ऐ-य! गाड़ी रोको! साले, गोली मार देंगे?’ बीसों गाड़ियां एक साथ कचकचा कर...

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_41

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“अहिंसा परमो धर्म:” “अहिंसा परमो धर्मः”  की नीति की मानव जीवन में सार्थकता है या नहीं इसकी समीक्षा मैं नहीं कर रहा हूं। मैं केवल यह बताना चाहता हूं कि  इस नीति का उल्लेख महाभारत महाकाव्य में कई स्थालों पर देखने को मिलता है।  उन्हीं की चर्चा करना मेरा प्रयोजन है। जो यहां उल्लिखित हो उसके अतिरिक्त भी अन्य स्थलों पर बातें कही गयी होंगी जिनका ध्यान या जानकारी मुझे नहीं है। अहिंसा परमो धर्मः स च सत्ये प्रतिष्ठितः । सत्ये कृत्वा प्रतिष्ठां तु प्रवर्तन्ते प्रवृत्तयः ॥ 74 ॥ ( महाभारत ,  वन पर्व ,  अध्याय  207  – मारकण्डेयसमास्यापर्व) (अहिंसा परमः धर्मः स च सत्ये प्रतिष्ठितः सत्ये तु प्रतिष्ठाम् कृत्वा प्रवृत्तयः प्रवर्तन्ते ।) अर्थ –  अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है, और वह सत्य पर ही टिका होता है। सत्य में निष्ठा रखते हुए ही कार्य संपन्न होते हैं। यहां कार्य से तात्पर्य सत्कर्मों से होना चाहिए। सत्कर्म सत्य के मार्ग पर चलने से ही संभव होते हैं।  धर्म बहुआयामी अवधरणा है । मनुष्य के करने और न करने योग्य अनेकानेक कर्मों का समुच्चय धर्म को परिभाषित करता है...

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_40

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आप सभी मे बहुत कम लोगों ने गौर किया होगा, जब हम सभी रातों को आसमान में टिमटिमाते तारों को देखते हैं तो हम सभी अपना अतीत देख रहे होते हैं. क्योंकि 4600 करोड़ वर्ष पहले हमारे धरती की यात्रा भी उसी दहकते आग के पिंड से शुरू हुई थी, यानी 4600 करोड़ वर्ष पहले हमारी धरती भी 6400km त्रिज्या का एक विशाल आग का गोला था. क्रमिक भौगोलिक घटनाएं क्रमशः “ रसायनिक पदार्थों का निर्माण, जल- वायु- धरती का निर्माण, जलीय जीव, पेड़-पौधे,जलीय जीवों से समय के साथ विभिन्न जीव (7 मिलियन) ” हुई. विविधता पूर्ण भौगोलिक पृष्ठभूमि बनी, 7 मिलियन प्रकार के जीवों की उत्पत्ति हुई, पेड़-पौधे की अनगिनत प्रजातियां और पर्यावरण के स्तर पर काफी विविधता है. पर्यावरण के स्तर पर विविधता ऐसी की धरती का कोई भूभाग सालों भर बर्फ से ढका रहता है, कोई भूभाग हमेशा पानी से ढका रहता है, कहीं चिलचिलाती धूप तो कहीं झमाझम बारिश, कहीं बर्फ़ों की बारिश वगैरह- वगैरह.... क्या आपको पता है कि यदि कोई एलेन ( दूसरे ग्रहों के जीव) हमारी पृथ्वी को देखता होगा तो वो किस बात से सबसे ज्यादा आश्चर्य करता होगा ?? हाँ, वो हमारी विविधता पर आश्चर्य करता होगा. अफसोस...

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_39

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नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्। हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा (सदैव) नमस्कार करता हूँ। तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है। महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे, पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥ १॥ हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो। मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूँ। प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता, इमे सादरं त्वाम नमामो वयम् त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं, शुभामाशिषम देहि तत्पूर्तये। हे सर्वशक्तिशाली परमेश्वर! हम हिन्दूराष्ट्र के अंगभूत तुझे आदरसहित प्रणाम करते हैं। तेरे ही कार्य के लिए हमने अपनी कमर कसी है। उसकी पूर्ति के लिए हमें अपना शुभाशीर्वाद दे। अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम, सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्, श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं, स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्॥ २॥ हे प्रभु! हमें ऐसी शक्ति दे, जिसे विश्व में कभी कोई चुनौती न दे सके, ऐसा शुद्ध चारित्र्य दे जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाये, ऐसा ज्ञान दे कि स्वयं के द्वारा स्वीकृत किया गया यह कंटकाकीर्ण मार्ग सुगम हो जाये। 'समुत्कर्षनिः...

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_38

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समर्पण विद्वान व्यक्ति की भाषा है.  यह जवाबदेही के साथ आपकी जिम्मेदारी है. हमारी कमजोरी ही हमारी नाउम्मीदगी का कारण बनती है. अगर आप ऐसी स्थिति से खुद को बचा कर रखना चाहते हैं तो आपको अपनी शक्तियों को और  बढ़ावा देना चाहिए. आपकी शक्ति या ताकत उस समर्पण की उर्जा से आती है जिससे आपके जीवन की हर राह उत्कृष्ट बन जाती है. बहुत कम लोग बिना किसी व्यवधान या परेशानी के सफलता की राह को पार कर पाते हैं. इसमें अगर कोई उनके लिए सबसे बड़े सहायक के तौर पर काम करता है तो वह है उनका समर्पण भाव. समर्पण का अर्थ है किसी भी तरह से पसंद या उलझना नहीं है. यह तो किसी के साथ एकत्रित होने का भाव है. जब आप किसी व्यक्ति या उद्देश्य के साथ एकीकृत हो जाते हैं तो वहां आपका स्वार्थ समाप्त हो जाता है. अगर आपके भीतर की ऊर्जा न्यूनतम स्तर पर है तो मुमकिन है कि बीच रास्ते में ही आपका समर्पण दम तोड़ दे. पर अगर आप अपने भीतर मौजूद उच्चतम ऊर्जा का अनुसरण करते हैं तो आपकी हर कमजोरी आपके मार्ग से स्वयं घटती चली जाएगी और वह धीरे-धीरे आपकी उत्कृष्ट ऊर्जा का हिस्सा बन जाएगी. ऐसी स्थिति आपको आध्यात्मिक रूप से ए...