#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_40

आप सभी मे बहुत कम लोगों ने गौर किया होगा, जब हम सभी रातों को आसमान में टिमटिमाते तारों को देखते हैं तो हम सभी अपना अतीत देख रहे होते हैं. क्योंकि 4600 करोड़ वर्ष पहले हमारे धरती की यात्रा भी उसी दहकते आग के पिंड से शुरू हुई थी, यानी 4600 करोड़ वर्ष पहले हमारी धरती भी 6400km त्रिज्या का एक विशाल आग का गोला था. क्रमिक भौगोलिक घटनाएं क्रमशः “ रसायनिक पदार्थों का निर्माण, जल- वायु- धरती का निर्माण, जलीय जीव, पेड़-पौधे,जलीय जीवों से समय के साथ विभिन्न जीव (7 मिलियन) ” हुई. विविधता पूर्ण भौगोलिक पृष्ठभूमि बनी, 7 मिलियन प्रकार के जीवों की उत्पत्ति हुई, पेड़-पौधे की अनगिनत प्रजातियां और पर्यावरण के स्तर पर काफी विविधता है. पर्यावरण के स्तर पर विविधता ऐसी की धरती का कोई भूभाग सालों भर बर्फ से ढका रहता है, कोई भूभाग हमेशा पानी से ढका रहता है, कहीं चिलचिलाती धूप तो कहीं झमाझम बारिश, कहीं बर्फ़ों की बारिश वगैरह- वगैरह.... क्या आपको पता है कि यदि कोई एलेन ( दूसरे ग्रहों के जीव) हमारी पृथ्वी को देखता होगा तो वो किस बात से सबसे ज्यादा आश्चर्य करता होगा ?? हाँ, वो हमारी विविधता पर आश्चर्य करता होगा.
अफसोस, इतनी धनी धरा को पाकर जब हमारे ज्ञान-क्षेत्र का विकास हुआ, हम उन्नत हुए, नित नए अनुसंधान किये, तो सबसे ज्यादा दोहन धरती की  प्रकृतिक वैविध्य वातावरण का ही किया. अपने हित के लियर अंधाधुंध वृक्षों की कटाई, वायुमंडल प्रदूषण, वन्य प्राणियों का दोहन, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण इत्यादि-इत्यादि. हमारे स्वार्थपूर्ण विकास ने हमारी धरती का सबसे ज्यादा शोषण किया, परिणामस्वरूप सबसे पहले तो इसका विकृत और भयानक प्रभाव वन्य जीवों पर पड़ा, उनके आवास नष्ट हुए, असामयिक वो विलुप्त होने लगे, असंख्य जीव तो ऐसे हैं जिन्हें हम अभी तक पहचान भी नहीं पाए हैं और वो विलुप्त हो गए और होते जा रहे हैं. हजारों जीव ऐसे हैं जिनके स्तित्व पर मानव स्तित्व टिका है और वो भी विलुप्ति के कगार पर है. ICUN एक वैश्विक संस्था है जो हर साल ऐसे विलुप्ति के कगार पर आ रहे जीवों के नाम की सूची जारी करती है जिसे (RED LIST) रेड लिस्ट कहते हैं।
आज अंधाधुंध वृक्षों की कटाई हो, प्रदूषण का कोई स्वरूप हो, अनियंत्रित हैं. इससे ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव बहुत ही विस्तृत है यानी इसका प्रभाव जीवन के हर घटक पर बहुत ही विकृत रूप से पड़ रहा है। आये दिन समाचार पत्रों व अन्य माध्यमों से पढ़ने-देखने-सुनने को मिलते रहते हैं कि जंगल मे ही आग लग गई है, और अनियंत्रित है. आपको आश्चर्य और दुख दोनों होगा जब आप जानेंगे कि हमारे देश के छोटे से राज्य उत्तराखंड में एक अक्तूबर, 2020 से लेकर चार अप्रैल 2021 की सुबह तक जंगलों में आग लगने की 989 घटनाएं हो चुकी हैं। इन घटनाओं में 1297.43 हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं. सोचिए, इसका किस-किस स्वरूप में प्रभाव पड़ता होगा.... पहले तो वृक्षों का सर्वनाश हुआ, कार्बन उत्सर्जन हुआ, सम्बंधित जंगल के वन्य जीव मरे होंगे, उनके आवास नष्ट हुए, प्रदूषण का स्तर बड़ा, ग्लोबल वार्मिंग पर प्रभाव पड़ा, और इन सभी परिवर्तन से मानव जीवन अपने पतन की ओर बहुत आगे की ओर बढ़ा.
हाल ही में पर्यावरण असन्तुलन के परिणामस्वरूप 'हीट डॉम' के कारण  कनाडा, कोलंबिया में महज (02 जुलाई 2021) 24 घण्टे के भीतर 62 जगह पर आग लग गई, पास के 90% गाँव जल गए, दैनिक तापमान लगभग 50℃ के करीब पहुंच गया, वन्य जीवों के अतिरिक्त 250 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो गई.
पर्यावरण असन्तुलन जो आप देख रहे हैं, पीड़ित हैं, इसके लगभग मर्ज की एक दवा है, पेड़-पौधे लगाएँ, जो लगे हैं उनका संरक्षण करें, ये पेड़-पौधे हीं वातावरण में जीवनरक्षक "ऑक्सीजन" की मात्रा बनाये रखेंगे, वन्य जीवों-पशु-पक्षियों को आवास मिलेगा, वायुमंडल से अतिरिक्त कार्बन का अवशोषण करेंगे, फल-फूल-औषधीय देंगे, और अन्य भी, जिसे केवल हमारा मन- हमारी रूह ही महसूस कर सकती है और वो है छाया, शांति, जीव-जंतु-पशु-पक्षियों की कलवर संगीत, वैविध्य संसार... इत्यादि.
नीचे संलग्न तस्वीर देखिये, जंगल के आग की है, आपसभी को जानकारी के लिए बता दूं कि यदि पर्यावरण संरक्षण में अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन नहीं करते हैं तो आप तस्वीर में अपना भविष्य देख रहे हैं, अतः सचेत हो जाएं


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