#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_57
हमारी कविता संग्रह;
“ राही राहों में ”
बढ़ रहे हैं
मंजिल की ओर
राहें बहुत दलदली हैं
शुष्क फिजायें भी
गिरने का भी डर
रफ्तार तेज करूँ तो
पाँव जमीं में धस जाते
जैसे कींचड़ में पैर
रफ्तार धीमी करूँ तो
दिल में बेचैनी भी होती है
क्या करूँ बड़ी उलझन है
ले लील भले ही राह मुझे
लौटना नहीं स्वीकार मुझे
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बड़ी विस्मय की बात ये
बड़ी अनोखी है बात ये
वादे किये,न फिरूँ पीछे
हिम्मत है,न तकूँ पीछे
भले हीं कुछ देरी हो, चिंता भी हो
पर सफर की शाम मंजिल पे हीं हो
जीवन की राहें ऐसी भी
कहीं काँटे,कहीं कंकड़ भी
सफर में रही अब सोचे क्या
मंजिल की धुन,चिंता क्या
राही राहों में
घबराना ना
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