#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड--10

#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष

#एपिसोड-10

#गोपालदास_नीरज #जयंती

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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा  #हिंदी_साहित्य_की_वीणा से अलंकृत इटावा(उप्र) के पुरावली में जन्मे पद्मश्री व पद्मभूषण से अलंकृत अनमोल सदाबहार हिंदी छंदों/गीतों/नज्मों के रचयिता युवाओं के परमप्रिय साहित्यकार गीतकार #गोपालदास_नीरज की आज 4थी जनवरी को 94वीं जयंती है, सादर नमन

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नीरज जी द्वारा रचिय कुछ सदाबहार छंद जो उन्हें अविस्मरणीय व युवा के हृदयरत्न बनाते हैं
01.
मैं पीड़ा का राजकुँवर हूँ तुम शहज़ादी रूप नगर की
हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहाँ पर होगा ?

मीलों जहाँ न पता खुशी का
मैं उस आँगन का इकलौता,
तुम उस घर की कली जहाँ नित
होंठ करें गीतों का न्योता,
मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरी
मिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का…

मेरा कुर्ता सिला दुखों ने
बदनामी ने काज निकाले
तुम जो आँचल ओढ़े उसमें
नभ ने सब तारे जड़ डाले
मैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरा
मिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का…

मैं जन्मा इसलिए कि थोड़ी
उम्र आँसुओं की बढ़ जाए
तुम आई इस हेतु कि मेंहदी
रोज़ नए कंगन जड़वाए,
तुम उदयाचल, मैं अस्ताचल तुम सुखान्तकी, मैं दुखान्तकी
जुड़ भी गए अंक अपने तो रस-अवतरण कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का…

इतना दानी नहीं समय जो
हर गमले में फूल खिला दे,
इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी
हर ख़त का उत्तर भिजवा दे,
मिलना अपना सरल नहीं है फिर भी यह सोचा करता हूँ
जब न आदमी प्यार करेगा जाने भुवन कहाँ पर होगा ?
मैं पीड़ा का…


02.
आँसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा
जहाँ प्रेम का चर्चा होगा, मेरा नाम लिया जाएगा

मान-पत्र मैं नहीं लिख सका, राजभवन के सम्मानों का
मैं तो आशिक़ रहा जन्म से, सुंदरता के दीवानों का
लेकिन था मालूम नहीं ये, केवल इस ग़लती के कारण
सारी उम्र भटकने वाला, मुझको शाप दिया जाएगा

खिलने को तैयार नहीं थी, तुलसी भी जिनके आँगन में
मैंने भर-भर दिए सितारे, उनके मटमैले दामन में
पीड़ा के संग रास रचाया, आँख भरी तो झूम के गाया
जैसे मैं जी लिया किसी से, क्या इस तरह जिया जाएगा

काजल और कटाक्षों पर तो, रीझ रही थी दुनिया सारी
मैंने किंतु बरसने वाली, आँखों की आरती उतारी
रंग उड़ गए सब सतरंगी, तार-तार हर साँस हो गई
फटा हुआ यह कुर्ता अब तो, ज़्यादा नहीं सिया जाएगा

जब भी कोई सपना टूटा, मेरी आँख वहाँ बरसी है
तड़पा हूँ मैं जब भी कोई, मछली पानी को तरसी है
गीत दर्द का पहला बेटा, दुख है उसका खेल-खिलौना
कविता तब मीरा होगी जब, हँसकर ज़हर पिया जाएगा
~ गोपाल दास 'नीरज'

03.
तब मानव कवि बन जाता है !
जब उसको संसार रुलाता,
वह अपनों के समीप जाता,
पर जब वे भी ठुकरा देते
वह निज मन के सम्मुख आता,
पर उसकी दुर्बलता पर जब
मन भी उसका मुस्काता है !
तब मानव कवि बन जाता है !

04.
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना 
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।

नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल, 
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्व र्ग छू ले, 
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी, 
निशा की गली में तिमिर राह भूले, 
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग, 
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना 
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। 

सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में, 
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी, 
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी, 
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी, 
चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही, 
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना 
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। 

मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में, 
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा, 
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के, 
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा, 
कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब, 
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना 
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
~ गोपाल दास 'नीरज'
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आकाश भर नमन......

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