#अभ्युदय_से_चरमोत्कर्ष #एपिसोड_32

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पितृपक्ष तर्पण : विधि एवं मंत्रोच्चारण



देव तर्पण आरम्भ : भाद्रपद शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, चतुर्दशी एवं पूर्णिमा

पितृ तर्पण आरम्भ : आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा ( पैरवा ) तिथि से आरम्भ




तर्पण की विधि और मंत्र
स्नान के उपरांत मन के शुद्धिकरण हेतु गायत्री मंत्र का एक बार स्मरण करें
(१) { देवतर्पण } पूर्व दिशा की ओर खड़े होकर, हाथ में त्रिकुशा लेकर निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए १-१ अञ्जलि जल दें ⤵️
ॐ ब्रह्मा तृप्यताम्।
ॐ विष्णुः तृप्यताम्।
ॐ रुद्रः तृप्यताम्।
ॐ प्रजापतिः तृप्यताम्।
ॐ देवाः यक्षास्तथा नागाः गन्धर्वाऽपरससोऽसुराः।
क्रूराः सर्पाः सुपर्णाश्च तरवो जम्भकाः खगाः॥
विद्याधरा जलाधाराः तथैवाऽऽकाशगामिनः।
निराधाराश्च ये जीवाः पापेऽधर्मे रताश्च ये।
तेषामाप्यायनायैतद् दीयते सलिलं मया॥

(२) { सनकादि ऋषितर्पण } उत्तर दिशा की ओर घूमें, जनेऊ की माला बना कर निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए १-१ अञ्जलि जल दें ⤵️
ॐ सनकादय आगच्छन्तु (इत्यावाह्य) –
ॐ सनकश्च सनन्दश्च तृतीयश्च सनातनः।
कपिलश्चाऽसुरिश्चैव वोढुः पञ्चशिखस्तथा॥
सर्वे ते तृप्तिमायान्तु मद् दत्तेनाऽम्बुना सदा॥

(३) { मरीच्यादि ऋषितर्पण } पुन: पूर्व दिशा की ओर घूमें, जनेऊ ठीक करें व निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए १-१ अञ्जलि जल दें ⤵️
ॐ मरीच्यादय आगच्छन्तु (इत्यावाह्य) –
ॐ मरीचिस्तृप्यताम्।  ॐ अत्रिस्तृप्यताम्।
ॐ अङ्गिरास्तृप्यताम्।  ॐ पुलस्त्यस्तृप्यताम्।
ॐ पुलहस्तृप्यताम्।  ॐ क्रतुस्तृप्यताम्।
ॐ प्रचेतास्तृप्यताम्।  ॐ वसिष्ठस्तृप्यताम्।
ॐ भृगुस्तृप्यताम्।  ॐ नारदस्तृप्यताम्।

(४) दक्षिण दिशा की ओर घूमें, जनेऊ को उल्टा पहनें, त्रिकुषा को रख, मुड़ा हाथ में लेकर निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए १-१ अञ्जलि जल दें ⤵️
ॐ अग्निष्वात्तादय आगच्छन्तु (इत्यावाह्य) –
ॐ अग्निष्वात्तास्तृप्यन्ताम्, इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः।
ॐ सौम्यास्तृप्यन्ताम्, इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः।
ॐ हविष्मन्तस्तृप्यन्ताम्, इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः।
ॐ उष्मपास्तृप्यन्ताम्, इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः।
ॐ सुकालिनस्तृप्यन्ताम्, इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः।
ॐ बर्हिषदस्तृप्यन्ताम्, इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः।
ॐ आज्यपास्तृप्यन्ताम्, इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः।

ॐ यमादय आगच्छन्तु (इत्यावाह्य) –
ॐ यमाय नमः।   ॐ धर्मराजाय नमः।
ॐ मृत्यवे नमः।   ॐ अन्तकाय नमः।
ॐ वैवस्वताय नमः।   ॐ कालाय नमः।
ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः।   ॐ औदुम्बराय नमः।
ॐ दध्नाय नमः।   ॐ नीलाय नमः।
ॐ परमेष्ठिने नमः।   ॐ वृकोदराय नमः।
ॐ चित्राय नमः।   ॐ चित्रगुप्ताय नमः।

ॐ चतुर्दशैते यमाः स्वस्ति कुर्वन्तु तर्पिताः।
ॐ आगच्छन्तु मे पितर! इमं गुह्णन्त्वपोञ्जलिम्॥

(५.) { पितृतर्पण } पूर्ववत् मोड़ा, तिल, जल लेकर
निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते पितृतर्पण के लिए प्रत्येक मंत्रोच्चरण के बाद ३-३ अञ्जलि जल दें ⤵️
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ॐ अद्य अमुकगोत्रः पिता अमुकशर्मा तृप्यतामिदं (सतिलं) जलं तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा॥

ॐ अद्य अमुकगोत्रः पितामहः (बाबा) अमुकशर्मा तृप्यतामिदं (सतिलं) जलं तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा॥

ॐ अद्य अमुकगोत्रः प्रपितामहः (परबाबा) अमुकशर्मा तृप्यतामिदं (सतिलं) जलं तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा॥
ॐ अद्य अमुकगोत्रः पिता, पितामह, प्रपितामहः (तीनों का नाम एकसाथ) अमुकशर्मा तृप्यतामिदं (सतिलं) जलं ॐ तृप्यध्वम् – ॐ तृप्यध्वम् – ॐ तृप्यध्वम्॥

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ॐ अद्य अमुकगोत्रः मातामहः (नाना) अमुकशर्मा तृप्यतामिदं (सतिलं) जलं तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा॥

ॐ अद्य अमुकगोत्रः प्रमातामहः(परनाना) अमुकशर्मा तृप्यतामिदं (सतिलं) जलं तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा॥

ॐ अद्य अमुकगोत्रः वृद्धप्रमातामहः अमुकशर्मा तृप्यतामिदं (सतिलं) जलं तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा, तस्मै स्वधा॥
ॐ तृप्यध्वम् – ॐ तृप्यध्वम् – ॐ तृप्यध्वम्॥
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स्त्रीपक्ष मे १-१ अञ्जलि जल दें ⤵️

ॐ अद्य अमुकगोत्रा माता अमुकदेवी तृप्यतामिदं (सतिलं) जलं तस्यै स्वधा॥

ॐ अद्य अमुकगोत्रा पितामही (दादी) अमुकदेवी तृप्यतामिदं (सतिलं) जलं तस्यै स्वधा॥

ॐ अद्य अमुकगोत्रा प्रपितामही (परदादी) अमुकदेवी तृप्यतामिदं (सतिलं) जलं तस्यै स्वधा॥
ॐ तृप्यध्वम्!
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ॐ अद्य अमुकगोत्रा मातामही (नानी) अमुकदेवी तृप्यतामिदं (सतिलं) जलं तस्यै स्वधा॥

ॐ अद्य अमुकगोत्रा प्रमातामही (परनानी) अमुकदेवी तृप्यतामिदं (सतिलं) जलं तस्यै स्वधा॥

ॐ अद्य अमुकगोत्रा वृद्धप्रमातामही अमुकदेवी तृप्यतामिदं (सतिलं) जलं तस्यै स्वधा॥
ॐ तृप्यध्वम्!
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तदोपरांत निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए १ अञ्जलि जल दें ⤵️
ॐ येऽबान्धवा बान्धवा वा येऽन्यजन्मनि बान्धवाः।
ते तृप्तिमखिला यान्तु यच्चाऽस्मत्तोऽभिवाञ्छति॥

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धोती या गमछे के एक किनारे को जल में भिगो कर निम्नलखित मंत्रोच्चरण कर बाएँ में लेकर दाहिने हाथ की तर्जनी से होते हुए जल को अर्पित करें   ⤵️
ॐ ये चास्माकं कुले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृताः।
ते पिबन्तु मया दत्तं वस्त्रनिष्पीडनोदकम्॥

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अब पुन: पूर्व दिशा की ओर घूमें, जनेऊ को ठीक करें, हाथ में पुन: त्रिकुसा लें व जल लेकर निम्नलिखित मन्त्रों का  उच्चारण करते हुए सूर्य भगवान को १-१ अञ्जलि जल अर्पण करें ⤵️
ॐ नमो विवस्वते ब्रह्मन् भास्वते विष्णुतेजसे।
जगत्‌सवित्रे शुचये सवित्रे कर्मदायिने॥
एषोऽर्घः ॐ भगवते श्री सूर्य नरायनाय नमो नमः।🙏

आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ॥
एषोऽर्घः ॐ भगवते श्री सूर्य नरायनाय नमो नम:।🙏

ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पतेए अनुकंपयेमां भक्त्याए गृहाणार्घय दिवाकर:।।
एषोऽर्घः ॐ भगवते श्री सूर्य नरायनाय नमो नम:।🙏

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम।
तमोsरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्मि दिवाकरम।।
एषोऽर्घः ॐ भगवते श्री सूर्य नरायनाय नमो नम:।🙏


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