#अभ्युदय_से_चर्मोत्कर्ष #एपिसोड_51

हमारी कविता संग्रह - 03

न किसी ने सराहा...

न  किसी  ने सराहा , न  किसी  का  सहारा

मैं उतना ही जिया, जितना खुद को निखारा


लोग लुटते भी  रहे, और लोग लूटते भी रहे

मैं जहाँ भी गया, हर तरफ बस यही था नजारा

मैं उतना ही जिया...


हर तरफ हाथों में डंडे, हर सर खून से लतपत

ऐसे भी कितनों का चलेगा कब तक गुजारा

मैं उतना ही जिया...


टूटती साँसें, चीखते स्वजन, बिलखती आवाजें

ऐसे हालात में इंशां का न होगा जीना गवारा

मैं उतना ही जिया...


हमें आपसे है ढेरों उम्मीदें, इसका खयाल रखियेगा

यों तो बहुत लोग मिले मुझसे, सबसे किया किनारा

मैं उतना ही जिया...


ये जो दुनियाँ है रंगबिरंगी, सब झूठे हैं, दिल सूने हैं

दो कदमों के साथ बस,सबने खुद को खुद हीं सँवारा

मैं उतना ही जिया....


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