आदर्शों का आत्मबोध

आदर्शों का आत्मबोध,  एपिसोड: 60

कभी-कभी मेरे मन मे आता है कि वर्तमान में भौतिक विकास के सभी कार्य रोक देने चाहिए जैसे सड़क निर्माण, नए पुल-हवाई अड्डे, प्राकृतिक तेल सोधन/भूमि उत्खनन व अन्य और इसमें लगे लोगों को समाज मे व्याप्त विकृतियों जैसे जलवायु परिवर्तन, नैतिकता, मानव-आदर्शों के प्रति आत्मबोध के प्रति जागरूक करने में लगा दें और सरकार व जुड़ी संस्थाएं केवल लोकहित हेतु बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा व सुरक्षा के लिए काम करें।

क्योंकि ऐसा महसूस हो रहा है कि आजादी के बाद लगातार 75 वर्षों से विकास के काम करते-करते लगभग हर संस्थायें थक गई हों और जुड़े लोगों की मति मारी गई है।

ऐसी परिस्थितियों में वैसे लोग,जिनका मन-कर्म-वचन दिन-रात जनहित के प्रति ओतप्रोत होता है,वो बड़ी असमंजस के साथ जीते हैं।
जो लोग समाज व पारिस्थितिकी की जटिलताओं को समझते हैं, वे अपने सम्बोधन,लेखन व अन्य गतिविधियों से समाज व सरकार को आगाह करते रहते हैं,
पर सिस्टम सुधरता ही नहीं।

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